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________________ ( १८९) __ और सच्च कहा जाये तो ऐसी घातकी चाल सज्जन लोक कढापि करते नही, माणात होते पर भी विरुद्धाचरण उन्होंसे होता ही नहीं, कारन कि विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधिविक्रम । यससि चाभिरुचिर्व्यसनंश्रुते प्रकृति सिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥ अर्थ-विपत्ति में धैर्य, क्रोधमें क्षमा, सभा वाणी की प्रत्री णता, युदमें पराक्रम, कीर्तीकी इच्छा, शास्त्राभ्यासका व्यसन यह महान पुरुपोंकी एक स्वाभाविक वस्तु है । परन्तु अपनेमें इससे उल्टा रिवाज है " रोतेथे और पीहरसाले मिले " एक तो अज्ञानपना और उसमें ऐसे सरान रिवाज आ मिले. ज्यादा मदवाड हुई कि उसकी सेवा करना तो अलग रहा और चिल्हा २ के रोना शुरु करते हैं जिससे बीमार आदमी थरडा जाता है और उसका अतकाल शीघ्र हो जाये, यही तो अपनी सूवी ' मनुष्य मृत्यु पाया कि धांधल मचाते पुन्प शर्माते नहीं, चैसे हो खिया अमर्याद रीतिसे रोनी फटती है, जराभी रजा नहीं रखती, ज्ञातिमें कोई मरा कि पतनीक औरतोंकी रोने कृटनेकी होस पूरी होती है, धिकार
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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