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________________ (१५५) खानेको जाते हैं उनमें दयाल लज्जालु इन्द्रियोको वश करने पाले आदि मार्गानुसारीके गुण कहा रहे ? वैसेही हाल के प्रचलित निदनीय रिवान देवकर मृत्युके वाद (जीमनवार-नुकता) मार्गानुसारीफे रिन्दनीय काममे न मरतने के गुण कहां रहे ? सर्व मियजनो। साधक धनका निम्म्मा व्यय होता हे इसम मार्गावसारीयोंकी दीर्घ दृष्टि कहा रहो ? इसका प्रमाण योगशास्त्रमें बताये हुए मार्गानुसारी गुणोंमसे कितनेक नाश होते है, तो फिर गोर रपी वृक्षका मूल जो सम्यकत्व उसका उसमें सभरही कहासे हो। और जर सम्यक्त्व न हो तर मोक्षके साधनभूत शाल, दर्शन, चारित्र रूप रत्नोका अभार स्वय सिद्धहै तो फिर धर्म कहा रहा ' पास्ते धर्मफे विनभूत ऐसे रिवाजाका नाश करनेको, सूरि जनाने तन मन और धनसे तत्पर रहना इसीहीमें श्रेयहै-ज्ञातिका उदय है और आगे क्रम • से धर्मकी साधनाको पायगा । ___ अर्थ आर कामका विनाश इन हानिकारक रिवाजासे होताहै यह जाहिर है-कारण कि अर्थ यानि द्रव्य जो कि खर्चनेसे विनाश पाताई और पैदा करने के साधन नाश पातेहैं वैसेही कामका इस कार्यसे विनाश होताहै कारण कि काम जो सासारिक सुख भोग उसका कारण अर्थ है अर्थसेही उसकी सिद्धि हो मक्ती है अर्थक विनाशसे कामका पिनाश होताहै ।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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