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________________ ( १५२ ) निर्धनता-गांवके अग्रेसर सेठ लोगोंकी खेदकारीके वास्ते जवलग इस रिवाजको देशयटा देनेमें न आदेगा वहांतक इन्यस्थितिबाले या विना द्रव्य संपत्तिवाले, होशवाले या लगन गिननेवाले, सुखसं आजीविका चलानेवाले हो या आजीक्षिका वाले दुःखदायकों के वास्ते यह रिवाज एक फर्न रूप शेता है उससे असंपत्तिवान संपत्तिवानकी देखा देखीसे इजत रखनेके वास्ते अज्ञानके गाढ अन्धकारमें पडकर नुकता करने में पीछे नहीं पड़ते, पैसे न हो तो घरवार या खेतीवाड़ी __ को कुछ मिलकत हो वो गिरवी रखते हैं या वेचडालते हैं अगर ऐसा नहीं तो कुटुब्बियोंसे पैसे उधार लेकर या बहुत व्याजपर कर्ज लेकर अपने यहां आये हुवे औसरको पार पाइदेते हैं, ऐसी बड़ाई पीछेसे विलबुल साधन रहित होजा ची है. थोड़ी मुद्दतके बाद मांगने वाले जव पैसे लेनेको आते हैं, __ और विलम्ब होनेसें खराव शब्द कहते हैं तब उसको घरआदि वस्तुए वेचनी पड़ती हैं. वह न हो तो धर आदि मांगने वालेको देना पड़ताहै. वहभी न हो तो वस्तपर कारागृहकी मुसाफिरी __ करनेको जाना पड़ताहै, इस तरह उसका बिलकुल नाश हो जाताहै और वाल बच्चे झूखे मरने लगते हैं, तथा जनसमाजमें औगुनका पात्र होता है. _ निंद्यता-कानफरन्सोंमें, मंडलोंमें, सभाओंमें घडे बड़े विधमान लोग भाषण द्वारा और गुनिराज व्याख्यान द्वारा
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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