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________________ ( ३ ) जावइया वयणपहा तावइया चेवहुति नयवाया || जावइया नयवाया तावइया चेवहुति परसमया ||१|| इस बात के पढने से आप लोगोंको यह भली मकारसे मालुम होगया होगाकि जैन धर्म मवर्त्तक सर्वप्रथे । इस लिये उन्होने किसी जगहपर भूल नहीं की, और जितनी वात प्रतिपादन की है ये सर निष्पक्षपात तथा विरोध रहिन प्रतिपादन की है। इस बात के सबूतमें एक जैनाचार्यजीका छोर गुनाता है | जरा व्यान लगाकर सुनले : वन्धुर्नन स भगवान् रिपवोपिनान्ये साक्षाच दृष्टचर एक तरोपि चैपाम् || श्रुत्वापच सुचरित च पृथग् विशेष । वीरगुणातिशय लोल तयोश्रिता स्म ॥ मतलन - श्री महावीर स्वामी हमारे भाइ नहीं है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा बुद्धादिक कोई हमारे दुश्मन नहीं है, और नहीं मच्छ कर्म आदि अवतारोंमेंसे किसी एकको देखा है । मगर तत् तत् प्रणीत सिद्धात वचनोंका श्रवण मनन और निदीयासन कर और उनके चरित्रमें जमीन आस्मानका फर्क देखकर, अधिक गुणानुरागसे हमने महावीर स्वामीका
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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