SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४२ ) हो गया कि यह दृश्य गुरुमहाराजका देहान्तके कारण हुआहै यह दृश्य खामगाममेंही नहीं किन्तु सैकडो कोशोमें देखनेमें आयाथा. गुरुमहाराजकी मृत्युके और उक्त चमत्कारिक घटनाके संबंध नागपुरके मारवाडी सप्ताहिक पत्रमें और बंबई जैनपत्रमें-सविस्तर वृतान्त प्रकाशित होचुकाहै, प्रसिद्ध २ विद्वानोंने और कई पत्रकारोंने गणीजीके मृत्युके संबंध शोक प्रकट कियाथा. गणीजीके शिष्योंपर कई महाशयोके सैकडो पत्र-शोक दर्शाने वाले आयेथे. उन पत्रोके उत्तर उन महाशर्योको उसी समय मिलचुके हैं। आप सरीखे उच्च कोटीके महात्मा यतिसम्पदायमें होना कठीन है । जिन २ महाशयोंने आपके दर्शन किये है वे इसमें लिखी हुई बातोंको अक्षरशः सत्य समझ सकते हैं। आपने अपने वृहत् शिष्यको तीसरे दिनकी रात्रीको स्वप्न में दर्शन दिये और कहा, जिस गतिके वारेमे तुझसे कहाथा वही गति मेरी हुई है, और तुमको मै वर देताहूं-तुम सुख शान्तिसे धर्मध्यान करते रहो और मुझे तुम दुःखमें निकट समझो । आपके स्वर्गगमनके बाद कई लोगोकी मानता सफल होजानेसें विधर्मी भी आपको अपने गुरु मानते हैं और भेट पूजा भेजते हैं. आपके दहन-स्थानपर स्थूभ (देहरी) बनाया गया है । एक कविने आपकी योग्य स्तुनि की है यह इस मकार है।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy