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________________ । १३५ ) देशके जैन तीर्थोकी यात्रा करनेको पधारे, यानाकरके पीछे खामगामको लौट आये ततः पश्चात् (स० १९५३ से १९६७ तक ) आजतकके १८ चातुर्मास आपके खामगाममेंही हुए थे ययपि भाप शेप कालमें विचरतेभी ये फिन्तु चातुर्मामके दिनोंमे लौटकर सामगामको आजातेथे स १९५६ में पाचोरेके सपके साथ केसरीयानीकी और मक्षी पार्श्वनाथजीकी याना स स १९५९ पीसनेर और फलोधी पार्श्वनाथजीसी यात्रा की स १९६० में सम्मेतगिसर प्रभृति पर्व देशके तीर्थोसी यानाको पधारे, जबलपुरंग आपरे उपदेशसे एक जैन पाठशालारथापित हुई स १९६३ में आपने अपने रघुशिष्यको शहर धलियमें दीक्षादी दीक्षामहोत्सवका कुल खर्ची श्रीमान् श्रापक कनीरामजी गुलामचद्रजी खीवमराने दिया इनदिनोंमें विद्यासागर, न्यायरत्न, श्रीमान् शान्तिविशयनी महाराज भी हर धुलियेमें थे. दीक्षाकी सपर्ण विपि मुनिराज शान्तिविजयजी महाराज के हस्तसे हुई, आपका और मुनिमहा राजका परस्पर वडाही प्रेमथा दीक्षाउत्सरका जलसा प्रशसनीय हुमा कुल श्रापक श्राविका इस उत्सव में सामिलये कई यति देशदेशान्तरोमे आयेथे इस दीलाके थोडेही दिनोंके पश्चात वेदनीय फोदयसे चरिननायक रियेके उपाथरी सिढीयोंसे उतरतेहुरे, पगचुकजानेसें गिरपडे, और पाये पायको चोट जोरसे लगनेसे हड्डीने स्थान छोडटीया पग मूज गया
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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