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________________ ( १३० ) आपके पुनाकाही हुआ. पुनेसे आप लौटकर खामगांव पधारे __ इन दिनोंमें ब्रह्मचारी रविदत्तजी जो कि आचार्य श्रीताराचंद्र रिजीसें मंत्रोपदेश लियाथा और ब्रह्मचारी हुवेथे वेभी अकस्मात् खामगांवमें आगये, दोनोंका मिलाप होनेसे संतुष्ट हुवे. ___ और कइ वर्ष साथ विचरे. इस स्थलका जल, वायु अच्छा मालूम होनेसे नव चातुर्मास खामगांवमेंही किये. यह स्थान निरुपद्रवी और एकान्त होनेके कारण इन नववर्षोंमें आपनें वधर्मान विद्या आदि अनेक विद्याओंकी साधना की। आपके सत्यशीलादि गुणोंसे वराड प्रान्तके स्वपरधर्मी सबकोई आपके दर्शनोंके अभिलाषी रहतेथे और प्रस्तुतभी अनेक विशेष व्यक्तियां आपके सद्गुणोंसे परिचित है. इन नव वर्षो में ब्रह्मचारी श्रीरवीदत्तजीभी आपके साथ रहे और दोनोंने मिलकर विद्याओंका साधन किया. सं १९३० में आपके शहर चीका नेरसे भ्राताओंके कई पत्र ऐसे आये कि, जिससे आपने मार_ वाडको जाना उचित समझा और रेल्वेद्वारा खण्डवा, जबलपुर, प्रयाग, दिल्ली और खुशकी रास्ता, भीयाणी, विसाउ, रामगढ, आदि शहरों में होतेहुवे शहर बीकानेर पधारे. विसाउके ठाकुर साहब श्रीमान् चंद्रसिंहजीने आपकी बहुत कुछ सेवा भक्ति की ठाकुर साहवको पुत्र नहीथा, इससे पुत्रके लिये क्या उपाय कियाजाय इस विषयमें आपसे पूछागया, आपने प्रसन्न होकर चरदिया कि-" इसी वर्ष आपको पुत्र होगा" वास्तवमें हु
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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