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________________ (१२८ ) रने समय पाट गन्दाग व्यक्त कर दियाथा वि.-" गेरी इच्छा ___ यह कभी नहीकी में किसी प्रकारकी पदवीय विभूपिन कोकर फिर और नमरी उच्छा पदवी लनेकीची विन्तु जब आप लोग देते है नो आपका मान रखने के लिये में खीकार कर लेताई। बातभी यही हुई, आपने अपने जीवन में सादगीको कभी नही त्यागी और न कभी किमीको अपने मासे यह का या लिखाकी में अमूक पदवि विभूपित है! बस : कोई पुछना जो उत्तरमें दमेगाह यही कहां करनेकि में भी एक जैन भिक्षुक हं. सब मुनियोका दास हूं, आपक साथ जिन्होंने वातीलाप किये है वे इस बातको टीम सत्य समझ सकते हैं। वि० सं० १९१८ चातुर्मास आपका शहर बीतानेरमही हुआ. भाईयोंके वैर विरोध ( कदाग्रह) को देख आपके बीकानेर में रहना आत्माका श्रेयनही समझा, चातुर्मास समाप्त होने पर तुरंत वहांसे विहारकर शहर इंदोर पधारगये और संवत १९१९ का चातुर्मास शहर इंदोरम बड़े उत्साह के साथहुआ. इंदोर नरेश श्रीमान् होलकर सरकार श्रीयुत तकुजीराव बढेही गुणज्ञ और साधुसंतके प्रेमीथे इससे महारे चरित्र नायकसे कईबार मिले, इन्दोर सरकारने आपसे कईबार कहा, ग्रामादि जिसवस्तुपर आपकी इच्छाहो और जो आप मांगे मै देको तैयारहूं किन्तु हमारे चरित्र नायकतो यही कहतेरहे कि हमें सबकुछ आनंदहै, किसीवातकी हमें इच्छा नही हैं । मनुष्यों
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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