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________________ ( ९० ) कि इनके भेदानुभेदको जानकर दयाभावसे इनकी रक्षा करें! यतः तमाम जीवोंके भेदानुभेदके वगैर समझे दया कभी नहीं पल सक्ती है. इसीलिये एक दयावान् पुरुषने कहाभी है कि दया दया मुखसे कहें ! दयानहाट विकाय जाति न जाणी जीवकी कहो ! दया किम थाय ? प्रिय मित्रो ! इससे आप बखूबी समझ गये होगें कि दया प्रधान अगर इस दुनिया में कोई माहै तो जैन मतही इत्यलं विस्तरेणविज्ञेषु इति जैमिनी यमतं नोट-जैमिनिसे वैदिक मतका एक आचार्य राममें यह यज्ञादिक कर्म काण्डको प्रधान समझताथा यएबदोषाःकिलनित्यवादे विनाशवादेऽपि समस्तान परस्परध्वं सिषु कण्टकेषु जयत्यदुष्यंजिनशासनं ते ॥१॥ प्रिय पाठक गणो ! सब दर्शनोंका किंचित् रहस्य आपके सन्मुख रजु करदिया गया है. इनके साथ अब इस जैन मतके रहस्यका मुकाबला कर देखियेकि किसतरह पक्षपात रहित हमारे जिनेश्वर देवने अपने केवल्य रत्नद्वारा तत्वप्रकाशकि
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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