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________________ (८७) यत वे मर कर देवगतिको जाते हैं बतलाइये । यह परिणामान्तर नहीं तो क्या हुआ? जैन-यहमि एक आपका खामग्वयाल है क्योंकि वातको मिड करनेगा कोई प्रमाण नहीं है देखिये । प्रथम प्रत्यक्ष प्रमाणसे तो यह सावितही नहीं होसक्ता क्योकि मत्यक्ष नाम नेत्रद्वारा साक्षात् देग्वनेका है सो नहि तुम देग्व सक्ते हों और नाहि दिसा सक्ता हा दुसरा अनुमानभी नहीं हो सक्ता ! क्योंकि लिङ्ग लिगके समन्यसे अनुमान होता है सो ऐसा कोई लिङ्ग (हेतु) नहा है जिसे द्वारा आप इसरातको सिद्ध करना चाहो तो ठीक नहीं है क्योकि आगमभी युघडेमेंहि पडा है (प्रस्तुत प्रकरण आगमके प्रमाण्य नहीं होने देता) अर्थापत्ति और उपमानमेंहि समावेश है अत यहभी गये । इसलिये आपका कहना लात है कि मरकर स्वर्ग में जाने है। अगर यनात मची होती तो पपने पुनादिको कोहि पूर्ण वर्गम पहुचाते । तो अन्य लोकभी समझ जाते कि ठीक येह रोग इम यानको नि सह तया स्वीकारते है बाद मापने कहाथाकि वेदविहित हिंसासे 7 फरत करनी ठीक नहीं है आपका यह कथाभी च्या है यत. हिमासे हमेशह न फरत ती चाहिये ! देखिये । जाप बेटान्तिाहि इसातसे न फरत करते हुए कह रहे है
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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