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________________ सब की व्यवस्था करना । इसी को प्राचार समाचारी कहा जाता है। जिसका आचरण समान रूप से किया जाए वही 'प्राचार-समाचारी' कहलाती है। (क) सयम समाचारी-सब प्रकार की अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्ति पाना ही संयम है । संयम का ज्ञान करना, संयम के सत्रह भेदो का स्वय पालन करना, दूसरों को पालन करने की प्रेरणा देना, सयम-पालन करने वालो का उत्साह बढ़ाना, सयम-विमुख साधको को संयम मे स्थिर करना, 'संयम-समाचारी' है। (ख) तप-समाचारी-तप के सभी भेदों को जानना स्वयं तप करना; तप करने वालो को उत्साहित करना, तप में स्थिर करना, सामूहिक रूप से तप करने की व्यवस्था करना "तप-समाचारी" है। (ग) गण-समाचारी-ज्ञान और चारित्न की वृद्धि के लिए बनाए गए संघीय नियमो का पालन करना, सारणा- भूले-भटके को स्वकर्तव्य की स्मृति दिलाना, वारणा-धर्म-विरुद्ध आचरणों से दूसरों को रोकना, गण में रहे हुए रोगी, नवदीक्षित, स्थविर एवं दुर्बल साधकों की सेवा का पूरा-पूरा प्रबंध करना गण-समाचारी है। (घ) एकाकी विहार-समाचारी-एकल विाहरी दो तरह के होते हैं-अवगुणों से और गुणो से । इनमें जो अवगुणो [चतुर्थ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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