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________________ ८. अविकत्थन : प्रात्मश्लाघा न करनेवाला। ९. अमायी : आत्मवंचना एवं पर-वंचना न करनेवाला। १०. स्थिरपरिपाटी : निरतर ज्ञानाभ्यास करनेवाला । ११. गृहीतवाक्य : जिसके वचन सभी के लिए सारगभित प्रतीत हों। १२. जित-परिषद् : परिषद् को वश करने मे कुशल । १३. जितनिद्र : निद्रा को जीतनेवाला हो तभी वह रात्रि मे सूत्र एवं अर्थ का एकान्त में चिंतन कर सकता है । १४. मध्यस्थ : सभी शिष्यो में समभाव रखनेवाला । १५. देशज्ञ : सयम के अनुकूल देश एव क्षेत्र विशेष का ज्ञाता। १६. कालज्ञ : उचित अवसर का जानने वाला। १७. भावज्ञ : शिष्यों के भावों का वेत्ता। १८. आसन्न-लब्धप्रतिभ : हाज़िरजवाब, प्रतिभाशाली, महान व्यक्तित्व से सम्पन्न व्यक्ति ही शासन-प्रभावना कर सकता है। १९. नानाविध-देशभाषज्ञ : अनेक देशों की भाषाए जाननेवाला हो। तभी वह देश-देशान्तर के शिष्यों को सुख पूर्वक उनकी भाषा में अध्ययन करा सकता है और जनता को भी उनकी भाषा में धर्मोपदेश दे सकता है। ममस्कार मन्त्र] [५५
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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