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________________ का परम कर्तव्य है । इसी को दूसरे शब्दों मे ऊवबूह भी कहते हैं । इसका अभिप्राय भी उत्साह का संवर्धन ही है। ६. बुद्धिवल-दर्शन ऐसा प्रयास करना जिससे कि अपने प्राश्रय में रहने वाले शिष्यों का अपने-अपने कार्य-विभाग में बुद्धि का विकास हो, चिन्तन-शक्ति बढ़े और आध्यात्मिक शक्ति की वृद्धि हो । ये छ: अतिशय आचार्य के है। उपलक्षण से ये अतिशय अन्य पदधरों के भी हो सकते है । जिन-शासन के उपदेशक, युक्त-प्रयुक्त विभाग के निर्देशक, अकुशल शिष्यों के निपुण शिक्षक, आदर्श सयमी आदि उत्तम लक्षणों से सम्पन्न प्राचार्य को नमस्कार करना विनय है । विनय ही धर्म का मूल है । आचार्य भी श्रीसंघ सस्था के उन्नायक होते है। जैसे चक्रवर्ती सम्राट छत्तीस विशेषताओं से समृद्ध होता है, वैसे ही आचार्य भी छत्तीस गुणो से सम्पन्न हुआ करते है । उन छत्तीस गुणो की गणना के संदर्भ में कुछ मत-भेद है । जिज्ञासुओं की जानकारी के लिए उन सबका उल्लेख करना ज्ञान-वृद्धि में सहायक ही होगा। अत: उनका सक्षिप्त रूप प्रस्तुत किता जाता है। पहले प्रकार के छत्तीस गुण पांच इन्द्रियों का वशीकरण, ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों का पालन, चार कषायों का त्याग, सार्वभौम पांच महाव्रतों चतुर्थ प्रकाश ५२]
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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