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________________ महाप्राचार्य या प्रचारज भी कहते हैं, वे भी अपने आपको 'अचारज' न कहकर आचार्य ही कहते हैं। क्या ये सभी प्राचार्य इस आचार्य-नमस्कार में सम्मिलित हो जाते हैं ? या नहीं! वस्तुतः इस तीसरे पद में केवल उन धर्माचार्यों का ही समावेश होता है, जो स्वयं आचार वान् हैं और दूसरों को भी पाचार-मार्ग का उपदेश करते है। जैसे रेलवे इजन स्वतः लाइन पर चलता है और अपने साथ डिब्बों और यात्रियों को भी खींचकर यथास्थान पहुंचा देता है, वैसे ही प्राचार्य भी अपना जीवन और समाज का जीवन मगलमय एवं कल्याणमय बनाकर पंचम-गति को प्राप्त हो जाते हैं या तीसरे भव' में परम-पद को प्राप्त करने की योग्यता एवं स्थिति प्राप्त कर लेते हैं । इस तरह के महामानवों को इस तीसरे पद में नमस्कार किया जाता है। अरिहन्तों और गणधरों की अनुपस्थिति में संघनायक प्राचार्य ही होते है । सिद्ध भगवान् पूर्णतया कृतकृत्य हो जाते है, उनके लिए कोई कार्य करना शेष नही रह जाता। अरिहन्तों और सिद्धों को लक्ष्य मे रखकर उनकी आज्ञा का आश्रय लेकर जो स्वयं सन्मार्ग पर चलते हैं और दूसरों को भी तीर्थङ्करों के बतलाए हुए मार्ग पर चलाते हैं वे धर्माचार्य माने जाते है । उनका अतिशय और कार्य-विभाग इस प्रकार है५.]. [चतुर्थ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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