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________________ जैसे प्रौर्य से विजय प्राप्त की जा सकती है, वेश से नहीं, वैसे ही रत्न-त्रय के उत्कर्ष से ही सिद्धत्व प्राप्त किया जा सकता है, केवल वेश मात्र से नहीं। १४. एक-सिद्ध-एक-एक समय में एक-एक सिद्ध होनेवाले एक-सिद्ध कहलाते है। १५. अनेक-सिद्ध-एक समय मे अनेक-अनेक सिद्ध होनेवाले अनेक सिद्ध माने जाते हैं । एक समय मे कम से कम संख्या में दो और अधिक से अधिक एक सौ आठ जीव सिद्ध हो सकते है । यदि जीव निरन्तर सिद्ध-गति को प्राप्त करें तो आठ समय के बाद अवश्य अंतर पड़ जाता है । सिद्धों मे अनन्त-ज्ञान, अनन्त-दर्शन, अनन्त-प्रानन्द और अनन्त-शक्ति समान है । ये गुण उनमें आत्मा की तरह सहभावी अविनाशी और अमूर्त है । राशिरूप में सब सिद्ध एक होते हुए भी सख्या में अनन्त है। सिद्ध-भावना एक की दृष्टि से सादि है और बहुतों की दृष्टि से अनादि है। अरिहंत और सिद्धों में परस्पर केवलज्ञान और केवल दर्शन में कोई अन्तर नही है, न तो सिद्धत्व दीपक की तरह बुझने वाला है और न सूर्य की तरह अस्त होने वाला है । वे इन्द्रिय, मन और बाह्य वैज्ञानिक साधनों की सहायता से निरपेक्ष हैं । वह सिद्धत्व मनुष्य भव मे ही उपलब्ध होता है अन्य किसी भव मे नही। उसका उदय होता है, अस्त नहीं । जब हम [ तृतीय प्रकाश ४.]
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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