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________________ आदि क्रियाओं में निपुण । ६. आगम-सिद्ध-आगम-शास्त्रों में प्रवीण । ७. अर्थ-सिद्ध जिसके समस्त प्रयोजन सफल हो गए हों। ८. यात्रा-सिद्ध-जिसकी यात्रा निर्विघ्न पूर्ण हो गई हो, अथवा जो यात्रा करने में कुशल हो । ___ ९. अभिप्राय-सिद्ध-जिसके अचिन्त्य मनोरथ भी सफल हो गए हों। १०. तप:सिद्ध-जो कठोर तप करने पर भी खेद न मानता हो। ११. कर्म-क्षय-सिद्ध - जिस ने पाठ कर्मों को सर्वथा क्षय करके परमात्मपद को प्राप्त कर लिया है वह कर्मक्षय सिद्ध है। इन भेदों में आदि के दस सिद्धों का समावेश 'नमो सिद्धाणं' पद में नहीं होता। जिन्होंने पाठ कर्मों का सर्वथा क्षय कर दिया है, इस पद में उन्हीं कर्म-बन्ध-मुक्त सिद्धों को नमस्कार किया गया है, अन्य को नहीं। यद्यपि कर्म-आय-सिद्धों का स्वरूप और प्रानन्द आदि गुणों में परस्पर कोई अन्तर नहीं है, वे सब गुण एक समान हैं तथापि वे भाव, क्षेत्र, काल, लिंग, संख्या, तीर्थ आदि उपाधि-भेद से दो प्रकार के है-अनन्तर-सिद्ध और परम्परसिद्ध । जो बिना किसी समय का अन्तर पाए सिद्ध हुए हैं वे अनन्तर सिद्ध और जो अंतर पाकर सिद्ध हुए हैं वे परम्पर-सिद्ध माने गए है। इनमें अनन्तर सिद्धों के नमस्कार मन्त्र] [३७
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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