SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बोध देनेवाले है, स्वयं कर्मो से मुक्त हो चुके है, दूसरो को मुक्त करने वाले है, ये आठ गुण भी अरिहन्त भगवन्तों में होते है। अरिहन्त भगवान में चार गुण अतिशयपूर्ण होते हैं, जिन्हें असाधारण गुण भी कहा जाता है। उन गुणों की दृष्टि से उन्हे लोकोत्तर विभूति भी कह सकते है, जैसे कि १. अपायापगम-अतिशय - जो अतिशय उपद्रवों का, आपत्तियों का तथा आत्मिक विकारों का पूर्णरूप से नाश करता है, उसे 'अपाय-अपगम-अतिशय' कहते है। २. ज्ञानातिशय-संसार का कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है जो भगवान् के ज्ञान की पहुंच से बाहिर हो, वे केवल ज्ञान से वस्तु के स्वरूप को जानते है और केवलदर्शन से विश्व भर को हस्तामलकवत् देखते है। वे सभी जीवों की सभी द्रव्य-पर्यायों को जानते व देखते है । ३. पूजातिशय-अरिहन्त भगवान् संसार में सर्वोत्तम पूज्य माने जाते है। यह प्राकृतिक अतिशय है जो अतीव विरोधी को भी अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है एवं उसके हृदय में भी पूजा-प्रतिष्ठा के संकल्प उत्पन्न कर देता है । देवलोकों में रहनेवाले देव और इन्द्र भी उनके दर्शन, स्तुति, वन्दना, वाणी-श्रवण करने के लिए लालायित रहते हैं । यही उनका पूजातिशय कहलाता है । ३०] [द्वितीय प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy