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________________ जीवों पर समान रूप से होता है, फिर भले ही कोई आस्तिक हो या नास्तिक धर्मात्मा हो या पापिष्ठ उनके प्रेम के अधिकारी सभी होते है। इन अठारह दोषो मे से यदि किसी में एक भी दोष पाया जाए तो वह आत्मा अरिहन्तत्व को प्राप्त नहीं कर सकती, वह परमेश्वर नही बन सकती, क्योकि जो हथियारो से सनद्ध है, उसमें भय दोष पाया जाता है, जो कामनी-सहित है, वह निष्काम नहीं बन सकता। जिसके पास यान-वाहन आदि का परिग्रह है, या उनका जा उपयोग करता है, वह अरिहन्त नही। राज्य-समृद्धि पर जिसने अधिकार जमाया हुआ है। वह परमेश्वर नही, क्योकि वह लोभ-दोष से दूषित है । जो परमेश्वर हो जाता है, उसे रुद्राक्ष की माला फेरने की आवश्यकता नही होती, क्योकि जो स्वय परमेश्वर है, वह किसकी माला फेरेगा ? जिसको यह पता नही कि मैने अभी तक कितनी बार जप किया है, वही माला फेरता है। परमेश्वर तो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी है, उसे माला फेरने की आवश्यकता ही क्या है ? शयन करने वाला भी अरिहन्तत्व के ऊचे पद पर आसीन नही हो सकता । किसी दैत्य आदि की हत्या करने वाले को जैन-दर्शन अरिहन्त नही मानता, अत. अठारह दोषों से मुक्त परमेश्वर को ही अरिहन्त मानना जैनदर्शन को अभीष्ट है। नमस्कार मन्त्र ] [ २१
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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