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________________ सब जीवों को बिना किसी भेद-भाव के अभयदान देता है और शरणागत की रक्षा करता है। ७. भ्रमर साध भ्रमर के समान होता है, क्योंकि भ्रमर में जो सात विशेषताएं हैं, वे साधु में भी होती हैं। दोनों का समान धर्म एक समान होने से साधु के लिए भ्रमर की उपमा दी गई है । १. जैसे भ्रमर फूलों का रस थोड़ा-थोड़ा ग्रहण करता है, किन्तु फूलों को वह किसी प्रकार की पीडा नहीं पहुंचाता, वैसे ही साधु भी दाता को बिना कष्ट दिए गृहस्यों के घरों से थोड़ा थोड़ा-आहार ग्रहण करता है । २. जैसे भ्रमर फूलों का मकरन्द ग्रहण करता है, किन्तु वह दूसरों को नहीं रोकता, वैसे ही साधु भी गृहस्थों के घर से आहारादि लेता है, किन्तु किसी को अन्तराय नहीं डालता। ३. जैसे भ्रमर अनेक फलों के रस से अपना जीवन निर्वाह करता है, वैसे ही साधु भी एक ही घर से नहीं अनेक घरों से निर्दोष आहार ग्रहण करके जीवन-निर्वाह करता है । ४, जैसे भ्रमर अधिक मकरंद मिलने पर भी उसका संग्रह करके नहीं रखता, वैसे ही साधु भी आहारादि अधिक मिलने का अवसर प्राप्त होने पर भी उसका संग्रह करके नहीं रखता। आवश्यकता के अनुसार ही ग्रहण करता है, १५४] ( যত মাস্ক
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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