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________________ रहता है वैसे ही श्रमण को भी किसी प्रकार के परीषह या उपसर्ग जिन-मार्ग से या संयम-मार्ग से विचलित नहीं कर सकते। ३. जैसे पर्वत प्राणियों का आधारभूत है, वैसे ही साधु भी छः काय का आधारभूत है। ४. जैसे पर्वत से अनेक नदियों का निकास होता है वैसे ही साधु से भी उपदेश के माध्यम से ज्ञान आदि स्रोत निकलते है, जिन से संसारी जीव लाभान्वित होते रहते हैं । ५, जैसे सब पर्वतों में मन्दरगिरि ऊंचा है वैसे ही साधु भी अन्य सब भेषों में उत्तम एवं मान्य साधु-वेष से युक्त है। ६. जैसे पर्वतों में सर्वोतम रस भी होते हैं, वैसे ही साधु भी रत्नत्रय से युक्त होते हैं। ७. जैसे पर्वत उपत्यकाओं एवं मेखला से सुशोभित होता है, वैसे साधु भी सुशिष्यों एवं श्रावकों से शोभित होता है । ३. ज्वलन साधु ज्वलन अर्थात् अग्नि के समान होता है । अग्नि में सात विशेषताएं होती हैं, उन्हीं विशेषतानों से साधु की विशिष्टता बताई गई है। १. जैसे अग्नि ईंधन से कभी तृप्त नहीं होती, वैसे ही साधु भी ज्ञानादि गुण ग्रहण करते-करते कभी तृप्त नहीं होता। २. जैसे अग्नि अपने तेज से देदीप्यमान होती है, वैसे नमस्कार मन्त्र] १४९
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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