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________________ करने पर ही संयम की साधना सम्यक् होती है, ऐसा तपपरायण व्यक्ति ही तपोधन कहलाता है । १०, संत-सत् अर्थात् सज्जनता एवं शान्ति की परम कोटि को स्पर्श करनेवाला महासाधक ही संत कहलाता है ११. अनगार-अगोर का अर्थ है वह परिमित स्थान जिसे घर कहा जाता है और जो माता-पिता, पुत्र-पुत्री भाई -बहिन, दास-दासी, पत्नी तथा पशु आदि प्राणियों से एवं अचेतन रूप नानाविध पदार्थों से युक्त होता है । इस प्रकार के मोहजनक पदार्थो से भरपूर घर का जिसने परित्याग कर दिया है, उसे अनगार कहते हैं । ऋषि-विशिष्ट ज्ञान से सपन्न साधु को ऋषि कहते हैं । उपर्युक्त सभी शब्द साधु शब्द के पर्यायवाची हैं और साधु के विभिन्न गुणों और कर्तव्यो पर प्रकाश डालने वाले हैं। प्राचार्य, गणधर, उपाध्याय, गणी, प्रवर्तक, बहुश्रुत, गणावच्छेदक ये सब उपाधियां विशिष्ट साधुप्रो की है, गृहस्थों की नही। संयप-तप की साधना करने वाली साध्वियों का समावेश भी साधुपद में हो जाता है । पचम पद को नमस्कार करने वाला साधक साधुता से सम्पन्न महान् आत्मा को नमस्कार करके अपने जीवन को मंगलमय बना लेता है। साधु की इकत्तीस उपमाएं __ जैन भागमों में जिन उपमानों से साधुता को उपमित १४०] प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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