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________________ अाराधना के लिए साधु कषायों से अपने को अछूता रखते हैं । इन्द्रियों और मन की दासता से मुक्त रहते हैं, राग और द्वेष से प्रोझल रहते हैं। उनकी अहिंसा प्राकाश के समान व्यापक होती है, वे अपना जीवन-निर्वाह अचित वस्तुप्रों से करते हैं, मृत्यु निकट पाने पर भी वे सचित्त वस्तु का सेवन नहीं करते। २५. अशुभ मन का निरोध, अशुभ वाणी का निरोध और अशुभ काय का निरोध साधु का लक्ष्य है। आगमों में योग, प्रणिधान, गुप्ति, समिति और समाधारणता का प्रयोग उपलब्ध है । इनका सूक्ष्म विश्लेषण, इस प्रकार है(क) मन, वचन और काय की सूक्ष्म स्थूल सभी क्रियाओ को योग कहते हैं। (ख) अवधान, एकाग्रता या ध्यान को प्रणिधान __ कहते है। (ख) अशुभ मन, वाणी और काय के निरोध को गुप्ति कहा जाता है। नियमों, उपनियमों से सभी अशुभ प्रवृत्तियों का स्वतः ही रुक जाना गुप्ति है। (घ) मन-वाणी और काय की निर्दोष प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। १३६ ] षष्ठ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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