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________________ न दूसरों को रात्रि-भोजन के लिए कहना और रात्रि-भोजन करनेवाले का मन, वचन और काय से समर्थन भी नहीं करना । जैसे कबूतर प्रादि पक्षी रात को न खाते हैं और न पीते ही हैं, अपने नीड में खाने-पीने की वस्तुएं रात को संग्रह करके भी नहीं रखते, यही रीति साधुनों की है। ७. श्रोत्रे न्द्रिय निग्रह, ८. चक्ष रिन्द्रिय निग्रह, ९. नाणेन्द्रिय निग्रह, १०. रसनेन्द्रिय निग्रह, ११. स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह। इन्द्रियों के इष्ट शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श आदि विषयों पर राग न करना तथा अनिष्ट विषयों पर द्वेष न करना ही इस इन्द्रिय-निग्रह का लक्ष्य है । १२. भाव-सत्य, १३. करण-सत्य, १४. क्षमा, १५. अविरोधता, १६. मन की शुभप्रवृत्ति, १७. वचन की शुभ प्रवृत्ति, १८. काय की शुभ प्रवृत्ति, इनका विवेचन, पहले किया जा चुका है। अनगार-साधु को छोटी-छोटी बातों में भी पूर्णविवेक रखने की आवश्यकता होती है। साथ ही साधु को सदा अप्रमत्त (जागृत) रहकर अपनी वृत्तियों के प्रति उसे सूक्ष्म निरीक्षण बुद्धि रखनी चाहिए, ताकि कोई छोटी-सी भूल भी न हो सके, क्योंकि जरा-सी भी भूल के प्रति की गई उपेक्षा भयंकर भूल का कारण बन जाती है। साधु पूर्ण अहिंसक होता है, उसका अहिंसा का क्षेत्र प्रकाश की तरह महान् है, वह न केवल मनुष्यों या पशुओं तक ही रक्षा करने का १३०] षष्ठ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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