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________________ से समर्थन भी नहीं करना । इस तरह सब प्रकार के परिग्रह का परित्याग करना सर्वत:-परिग्रह-विरमण महाव्रत है । इस महावत के बिना पहले के चार महाव्रत पूर्णतया सुरक्षित नही रह सकते है। इन्द्रिय-निग्रह महाव्रतों की आराधना वही साधक कर सकता है जो जितेन्द्रिय हो। जब इन्द्रिया साधक को धर्म-विरुद्ध अपने-अपने विषयों की ओर ले जाती है तब उनका निग्रह करना साधक के लिये आवश्यक हो जाता है। नहीं तो वे साधक को धर्मभ्रष्ट कर देती हैं। १. श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह-जिस इन्द्रिय द्वारा शब्द सुना जाता है, वह श्रोत्र न्द्रिय है। इसके द्वारा मानव सत्यभाषा भी सुनता है, और झूठी अफवाहें भी सुना करता है । जिनवाणी भी सुनता है एवं मिथ्यावाणी भी। धर्मोपदेश भी सुनता है एवं पापोपदेश भी। हितकर वचन भी सुनता है और अहितकर भी, इनमें सत्यभाषा, जिनवाणी, धर्मोपदेश, हितकर वचन सुनने का निग्रह नहीं किया जाता । असत्य, अफवाहें, पापोपदेश, अधर्मवाणी और राग-द्वेष-वर्द्धक वाणी सुनने से निवत्ति पाने के लिये श्रोत्रे न्द्रिय का निग्रह किया जाता है। २. चक्षुरिन्द्रिय-निग्रह-नेवों से जीवों की रक्षा भी की जाती है, अपना बचाव भी किया जाता है और शास्त्रस्वाध्याय भी किया जाता है । महापुरुषों के दर्शन भी हो नमस्कार मन्त्र] [ ११७
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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