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________________ छठी गुप्ति-रूखा-सूखा भोजन भी अधिक मात्रा में न करे; क्योंकि अधिक मात्रा में किया हुआ आहार पेट में फूल कर नाना रोगों को जन्म देता है । जिस हडिया में सेर भर चावल पक सकते हैं, यदि उसमें डेढ़ सेर चावल उबालने का प्रयत्न किया जाएगा तो उस अवस्था मे या तो हडिया नहीं या चावल नहीं। अत: रूखा आहार भी प्रमाण से अधिक नहीं करना चाहिए । अधिक प्राहार करने से या शरीर नहीं या ब्रह्मचर्य नहीं। दोनो की रक्षा के लिए युक्ताहार-विहार ही उपयुक्ततम सावन है । सातवीं गुप्ति-भुक्त भोगों का स्मरण भी न करे । जैसे नींबू का स्मरण करने से मुंह में पानी और दांतों में खटास आ जाती है, वैसे ही काम-वासना-वर्द्धक किसी भी क्रीड़ा का स्मरण करने से मन में विकृति पा सकती है। आठवीं गुप्ति-संगीत, हास्य, मज़ाक आदि विकारजनक अश्लील बातें न तो करनी चाहिये और न सुननी ही चाहिए। जैसे बादलों की गर्जना सुनने से मोर नाचने लगता है, वैसे ही अश्लील शब्द सुनने से काम-वासना को जागृत होने का अवसर मिल जाता है । नौवीं गुप्ति-शरीर की विभूषा न करे, क्योंकि विभूषा अर्थात् शृंगार का उद्देश्य ही दूसरों को रिझाना एवं प्राकर्षित करना होता है। अतः शृंगार भी ब्रह्मचर्य के लिए ११४] [ षष्ठ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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