SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शत्रुनों का संहार करता है और तुर्गति रूप संसार का अन्त करता है । अनेक प्रकार की लब्धियो का धारक होता है । चौदह रनो के समान चौदह पूर्वो का वेत्ता, नव-निधान के समान गुण-निधान होता है । उसकी यश-कीति दिगदिगन्तो मे व्याप्त होती है, अत. बहुध त भी चक्रवर्ती के तुल्य होता है। ६. शक्रन्द्र की उपमा--देवो का सर्वोपरि शासक इन्द्र कहलाता है, वह देवो का अधिपति, हजार नेटों वाला होने से सहनाक्ष है। हाथ मे वज होने से वज्रपाणि, दैत्यों का विदारण करने से पुरन्दर है इत्यादि अनेक सार्थक नाम इन्द्र के कहे गए है। उसकी तरह जिसके हाथ मे वज्र का लक्षण है, ज्ञान- प्टि हजार नेत्रो के तुल्य है, अपने पराक्रम से मोह रूप दैत्य को विदारण करनेवाला है, जिसका शासन मुमक्ष शो पर चलता है, इन विशेषतामों से युक्त बहुश्र त भी चतुर्विध श्रीसघ मे सुशोभित होता है, अतः बहुश्रुत भी इन्द्र के समान होता है। १०. सूर्य की उपमा-प्रकाशमान पदार्थो मे सब से बढ़कर सूर्य है--सूर्य अन्धकार का नाशक है, वह उदय होता हुआ तेज से देदीप्यमान होता है । उसके समान बहुश्रु त भी धर्मानुष्ठान मे सदैव अप्रमत्त रहकर अपने विलक्षण ज्ञान से तथा तप-तेज से मिथ्यात्वांधकार का नाशक होता है । उल्लू आदि पक्षियो और निशाचरो प्रादि नमस्कार मन्त्र [९१
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy