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________________ अवगुण हैं और उन की निवृत्ति होने पर साधक स्वतः ही योग्य बन जाता है। वे अवगुण संख्या में पांच है। उनमें यदि एक का भी उदय है तो मानव कभी भी योग्य नहीं बन सकता । वे अवगुण इस प्रकार हैं, जैसे कि १. स्तम्भ-मन में कठोरता पैदा करने वाला यदि कोई अवगुण है तो वह अभिमान है, वह शिक्षा या विद्या आदि सद्गुणो को ग्रहण करने मे पूर्ण वाधक है, क्योंकि अभिमानी व्यक्ति किसी दूसरे को विद्वान् या पूज्य समझता ही नही है । अभिमान का स्वभाव स्तम्भ की तरह होता है । स्तम्भ किसी भी देश और काल में झुकना जानता ही नही है । किसी तूफान के आने से उस का उन्मूलन तो हो सकता है, वह टूट भी सकता है, किन्तु झुक नहीं सकता। वैसे ही अभिमान भी किसी गुणी-जन या आचार्य-उपाध्याय के प्रागे विनम्र नहीं होने देता और विनम्रता के बिना मानव शिक्षा का पात्र नहीं बन सकता, क्यों कि "तद्विद्धि प्रणिपातेन"उस आत्म-तत्व को जानो प्रणिपात से, नमस्कार से । अतः शिक्षा-प्राप्ति में अभिमान वाधक है। स्तम्भ शिष्य में वन्दन का अभाव करता है। २. क्रोध-क्रोध यह भी शिक्षा या विद्या-प्राप्ति का बहुत बड़ा शत्रु है । क्योंकि जब गुरु या उपाध्याय शिक्षा देते हैं, तब कभी-कभी वे शिष्यों को ऊचे-नोचे शब्दो में उपालम्भ भी दे देते हैं, उस समय यदि कोई रूठ जाए, गाली नमस्कार मन्त्र ] [७९
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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