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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार २६६ ४८६ लहिऊण लावण्ण लाह लाहव लिहाविऊण लुद्धय २७६ ५४३ লা । लावण्य लाभ लाघव लिखाप्य लुब्धक लेप लौकिक लोक ३५५ ४८३ पाकर सौन्दर्य प्राप्ति, नफा, फायदा लघुता लिखकर भील लेपन, द्रव्य सासारिक भुवन लोचना, केशोका उखाडना विष्टप, ससार लोक-शिखर जीवादि द्रव्योके रहने का स्थान एक कषाय लोहेका गोला रावण उल्लंघन करके ur mr Har m 9 mm oxyr लौंच लोइय लोग लोच लोय लोयग्ग लोयायास लोह लोहंड लंकेस लंधित्ता लंब्ण ८३ ३१० ५३६ २१ लोक लोकाग्र लोकाकाश लोभ लोह + अंड लकेश लवयित्वा लाछन १३८ १३१ चिह्न १७४ ४३१ वैतरणी बकुल वक्ष्यमाण बक, वृक वचोयोग वात्सल्य ४२४ नरककी नदी वृक्ष-विशेष आगे कहा जानेवाला एक मास-भक्षी राजा, भेडिया वचन-योग अनुराग, प्रेम एक अस्त्र विशेष, हीरकमणि एक बाजा एक राजकुमार परित्याग वज्रमय शरीर सहनन १२७ ५३३ ८८ १६६ वज्र वाद्य वज्रकुमार २५३ वर्जन वइतरणी वउल विक्खमाण वग वचिजोग वच्छल्ल वज्ज वज्ज वज्जकुमार वज्जण वज्जसरीरसंहणण वज्जाउह *वज्जि वज्जिय वज्जिऊण वट्ट वट्टण वड. वडा वडिलिय वण्ण वणफ्फर २०७ वज्रशरीरसंहनन वज्रायुध वयं वर्जित वर्जयित्वा छोड़कर रहित छोड़कर वृत्त गोल ३२४ १३६ २० वर्तना वट पताका - पटलित वर्ण वनस्पति प्रतिक्षण बदलना बड़का पेड़ ध्वजा पटलोंसे युक्त ५६ ३६८ लता, गुल्मादि
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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