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________________ १४५ - परिब्भम= परि + भ्रम ( भ्रमण करना) १४६ परिवख परि + वयू (छोड़ना) १४८ - परुष प्ररूपय (प्रति पादन करना) १४९ - पलाय परा+अयू (भागना) १४० परिहर परि+ड (छोड़ना) परिहरे - = परिहरेइ परूवेमो १५० पोच प्र + लोक (देखना) – : १५१ - पवक्ख = प्र + वच् १५२ - पविस = प्र + विशू (घुसना) १५.३ पसेस + शंसू (प्रशंसा करना) १५४ - परस = दृश् (देखना) १५५ – पहर = प्र+छ (प्रहार करना) { १५६ - पापा (पीना) { १५७ पाउण = प्र + श्रप् ( प्राप्त करना ) १५८ - पाड - पातय ( गिराना) 刘 322 (देखो नं० १५६ ) १५९ - पिच्छ = दृश् प्र + ईद (देखना) प्रीकृत धातुरूप संग्रह परिभ्रमइ १६० - पिब - पा (पीना) २२ परिवज्जए परिवज्जियव्वाइं परिहरियण्वं पलाइ पलाइऊ पलायमाणो पलायमाणं पलोह पवक्खामि पविसइ पविसति पविसंता पसंसंति परस पस्सिय पहरह पहरंति पाइज्जइ पाविज्जइ पाउण्ड पाउदि पाडह पाडिऊण पाडेद पावइ पावर पाविऊण पाविज्जइ पावेर पावंति पिच्छर पिच्छद्द पिच्छता पिबह व० ल० विधि० ल० कृ० प्र० " 11 वि० ल० 23 17 21 23 33 स० कृ० 22 वर्त० कृ० 27 व० ल० 33 " 11 वर्त० कृ० वर्त० ल० स० कृ० आ० ल० 33 " 22 कर्म रिण वर्त० ल० व० ल० 22 सं० कृ० वर्त० ल० 17 31 वि० ल० स० कृ० क० व० ल० व० ल० 27 17 व० ल० आ० ल० व० कृ० व० ल० १६५ १७६ १११,१०२ ५८ ६६ २०५ १०३,१२१ १५१ १५४ १५,६६. १०१,४१८ २०६,२७९ १५१,३०४ ३०६ ३८ २२४ २७७,३१५,५२६ ५१० १४६ १४१,१६६ १५४ ८६१०१, १०४३० १००, ३६२ ५१६ १६ ५१६, ५२०, ५२४ ७२, १३ इत्यादि ११८ १३० २०१, ४६३ ४५४, ५४१ १०१, १०२ २६४ ३६५ २०३ ११० ८१
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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