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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास कोड़ाकोड़ि संख्या तक की वस्तुओं का संग्रह (समवाय ) है।' बारह अंग और चौदह पूर्षों के विषयों का वर्णन तथा ब्राह्मी आदि अठारह लिपियों का और नन्दिसूत्र का उल्लेख यहाँ मिलता है। मालूम होता है कि द्वादशांग के सूत्रबद्ध होने के पश्चात् यह सूत्र लिखा गया है। अभयदेव सूरि ने इस पर टीका लिखी है। एक वस्तु में आत्मा, दो में जीव और अजीव राशि, तीन में तीन गुप्ति, चार में चार कषाय, पाँच में पंच महाव्रत, छह में छह जीवनिकाय, सात में सात समुद्धात, आठ में आठ मद, नौ में आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के नौ अध्ययन, दस में दस प्रकार का श्रमणधर्म, दस प्रकार के कल्पवृक्ष, ग्यारह में ग्यारह उपासक प्रतिमा, ग्यारह गणधर, बारह में बारह भिक्षुप्रतिमा, तेरह में तेरह क्रियास्थान, चौदह में चतुर्दश पूर्व, चतुर्दश जीवस्थान, चतुर्दश रत्न, पन्द्रह में पन्द्रह प्रयोग, सोलह में सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के सोलह अध्ययन, सत्रह में सत्रह प्रकार का असंयम, सत्रह प्रकार का मरण, अठारह में अठारह प्रकार का ब्रह्मचर्य और अठारह लिपियों आदि का प्ररूपण किया गया है। अठारह लिपियों में बंभी (ब्राह्मी), जवणी ( यवनानी ) दोसाउरिया, खरोट्टिया ( खरोष्ठी ) खरसाविया (पुक्खरसारिया ), पहराइया, उच्चत्तरिया, अक्खर १. अहमदाबाद से सन् १९३८ में प्रकाशित । २. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के आरम्भ में ब्राह्मी लिपि को नमस्कार किया गया है। ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी ने इस लिपि को चलाया था। ईसवी पूर्व ५००-३०० तक भारत की समस्त लिपियाँ ब्राह्मी के नाम से कही जाती थीं। मुनि पुण्यविजय, भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखनकला, पृष्ठ ९॥ . ३. ईसवी पूर्व ५वीं शताब्दी में यह लिपि अरमईक लिपि में से निकली है, मुनि पुण्यविजय, वही, पृष्ठ ८ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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