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________________ ७७८ प्राकृत साहित्य का इतिहास गाँव की युवतियों द्वारा प्रशंसनीय वह तुम्हारे द्वारा अपने हाथ से उसके स्तनों पर लगाई हुई फाग-उत्सब की कीचड़ को मानो कुपित होकर लगवा रही है। सामण्णसुन्दरीणं विलममावहइ अविणओञ्चे। धूम चिअ पजलिआणं बहुमओ सुरहिदारूण ॥ (स० के०५,३९७) सामान्य सुन्दरियों का अविनय भी प्रीतिद्योतक हावभाव को उत्पन्न करता है । उदाहरण के लिये, जलाये हुए सुंगन्धित काष्ठ के धुएँ का भी बहुत आदर किया जाता है। (विलासिनी का उदाहरण) सा महइ तस्स हाउं अणुसोत्ते सोवि से समुव्वहइ। थणवभिडणविलुलिअकल्लोलमहग्घिए सलिले ॥ (स० कं५, २५६) वह उसके स्तनों को स्पर्श करनेवाली चञ्चल तरङ्गों से बहुमूल्य बने ऐसे जल के स्रोत में स्नान करने की इच्छा करता है । सामाइ सामलीए अद्धच्छिप्पलोइरीअ महसोहा। जम्बूदलकअकण्णावअंसे भमदि हलिअउत्ते।। (स० के० ३, ५२, गा० स० २,८०) हलवाहे का पुत्र जम्बूपत्रको अपने कानों का आभूषण बना कर घूम रहा है। अर्धनिमालित नेत्रों से उसे देखती हुई श्यामा के मुख की शोभा मलिन हो जाती है। (गूढ़, सूक्ष्म अलंकार का उदाहरण) सालिवणगोविआए उड्डीयन्तीअ पूसविन्दाइं। सव्वंगसुन्दरीएवि पहिआ अच्छीइ पेच्छन्ती ॥ (स० के०३, १४०) शालिवन में छिपकर तोतों को उड़ाती हुई सर्वांग सुंदरियों की केवल आँखों पर ही पथिक दृष्टिपात करते हैं । ( भाव अलङ्कार का उदाहरण ) सालोए चिय सूरे घरिणी घरसामियस्स घेत्तूण । नेच्छंतस्स य चलणे धुयइ हसन्ती हसंतरस ॥ (काव्या० पृ० ४१८, ७११; स० के० ३, १३९; गा० स०२, ३० दशरूपक प्र०२, पृ० १३२) सूर्य का प्रकाश रहते हुए भी, गृहिणी हंसते हुए गृहस्वामी के पैरों को पकड़ कर, उसकी इच्छा न रहते हुए भी हँसती हुई उन्हें हिला रही है । (भाव अलकार का उदाहरण) सा वसइ तुज्झ हिअए सा चिअ अच्छीसु सा अ वअणेसु । अह्मारिसाण सुन्दर ! ओआसो कत्थ पावाणम् ॥ (काव्य० प्र० १०,५६०) हे सुन्दर ! जब वही तुम्हारे हृदय में, तुम्हारी आँखों में और तुम्हारी वाणी में निवास करती है तो फिर हमारे जैसी पापिनियों के लिये तुम्हारे पास स्थान कहाँ ? (विशेष अलकार का उदाहरण)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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