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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास सरसं मउअसहानं विमलगुणं मित्तसंगमोलसिअम् । कमलं णट्टच्छायं कुगन्त दोसायर ! नमो दे ॥ (काव्या० ६९, १३९) सरस, मृदुस्वभाववाले, निर्मल गुणों से युक्त, मित्र के मंगम से शोभायमान ऐसे कमल ( महापुरुप ) को नाश करने वाले हे दोपाकर (चन्द्रमा, दुष्टजन )! तुझे नमस्कार है । ( अप्रस्तुत प्रशंसा का उदाहरण) सव्वस्सम्मि वि दड्ढ़े तहवि हु हिअअस्स णिव्बुदि चेअ । जं तेण गामडाहे हत्थाहत्थिं कुडो गहिओ ॥ (स० के०५, १५०; गा० स० ३, २९) गाँव में आग लगने पर सब कुछ जल गया, फिर भी मेरे प्रियतम ने जब मेरे हाथ से घड़ा लिया तो मेरे हृदय को सुख ही प्राप्त हुआ ! (हर्ष का उदाहरण) सह दिअसनिसाहिं दीहरा सासदण्डा, सह मणिवलएहिं वाहधारा गलन्ति। तुह सुहअ ! विओए तीए उज्वेविरीए, सह य तणुलदाए दुबला जीविदासा।। (काव्यप्रकाश १०, ४९५, कपूर मं०२,९) हे सुभग ! तुम्हारे पियोग में उद्विग्न उस नायिका की सांसें दिन और रात के साथ-साथ लम्बी होती जा रही है, आँसुओं की धारा मणि-कंकणों के साथ नीचे गिरा करती है और उसके जीवन की आशा उसकी तनुलता के साथ-साथ दुर्बल होती जा रही है । (सहोक्ति अलङ्कार का उदाहरण) सहसा मा साहिजउ पिआगमो तीअ विरहकिसिआए। अच्चंतपहरिसेण वि जा अ मुआ सा मुआ चेअ ॥ (स० के० ५, ५४) विरह से कृश हुई उस नायिका को सहसा प्रिय के आगमन का समाचार न कहना, क्योंकि अतिशय हर्प के कारण यदि वह कदाचित् मर गई तो फिर मर ही जायगी। सहिआहिं पिअविसज्जिअकदम्बरअभरिअणिभरुच्छसिओ। दीसइ कलंवथवओव्व थणहरो हलिअसोण्हाए ॥ (स० के० ५,३१०) प्रियतम द्वारा प्रदत्त कदंव की रज से पूर्ण अत्यधिक श्वास वाली हलबाहे की पतोहु का स्तनभारस खियों को कदंब के गुच्छे की भाँति प्रतीत हुआ। सहिआहिं भग्णमाणा थणए लग्गं कुसुम्भपुप्फुत्ति । मुद्धवहुआ हसिज्जइ पप्फोडन्ती गहवाई॥ (स.कं. ३, ५, ५, ३७७, गा० स० २,४५) मुग्धवधू के स्तनों पर लगे हुए, नखक्षतों को देखकर सखियों ने इसी में कहा कि देख तेरे स्तनों पर कुसुंबे के फूल लग रहे हैं, यह सुनकर वह मुग्यवधू उन्हें लगी! (अभिनय, स्नाभावोक्ति और हेतु अलङ्कार का उदाहरण)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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