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________________ ७७४ प्राकृत साहित्य का इतिहास सअणे चिंतामइअं काऊग पिअंणिमीलअच्छीए । अप्पाणो उवऊढ़ो पसिढिलवलआहि बाहेहि ॥ निमीलित नेत्रों वाली प्रिया ने अपने प्रियतम को शयन के ऊपर चिंताग्रस्त बना कर, शिथिल कंकणों वाली अपनी भुजाओं से उसे आलिंगन में बाँध लिया। सअलुज्जोइअवसुहे समत्थजिअलोअवित्थरन्तपआये। ठाइ ण चिरं रविम्मि व विहाण पडिदा वि मइलदा सप्पुरिसे ॥ (स० के० ४, ५०, सेतु० ३, ३१) समस्त पृथ्वी को प्रकाशित करने वाले, समस्त मनुष्यलोक में अपने प्रताप को फैलाने वाले ऐसे सूर्यरूपी सत्पुरुष में विवि के द्वारा उत्पादित (प्रभातकाल में पड़ी हुई ) मलिनता चिरकाल तक नहीं ठहरती। ( साम्य अलकार का उदाहरण) सकअग्गहरहसण्णामिआणणा पिअइ पिअअमविइण्णम् । थो थोअं रोसोसह व उअ! माणिणी महरम् ॥ (स० के० ५, २८८; गा० स०६,५०) देखो, केशों को पकड़ कर जिसका मुख झट से ऊपर की ओर उठा दिया गया है ऐसी मानिनी अपने प्रियतम के द्वारा दी हुई मदिरा को मानो मान की औपधि के रूप में थोड़ा-थोड़ा करके पान कर रही है ! सग्गं अपारिजाअं कुत्थुहलच्छीविरहि महुमहस्स उरं। सुमरामि महणपुरओ असुद्धयंदं च हरजडापब्भारं॥ (सं० कं० ३,१७७; काव्या० पृ० ३६५, ५६०; सेतु५४,२०) समुद्रमंथन के पूर्व स्वर्ग को पारिजात पुष्प से -शून्य, विष्णु के वक्षस्थल को कौस्तुभ मणि से रहित तथा शिवजी के जटाजूट को चन्द्रमा के खंड से शून्य स्मरण करता हूँ। (प्राग्भाव का उदाहरण) सञ्चं गरुओ गिरिणो को भणइ जलासआ ण गंभीरा । धीरेहिं उवमाउं तहवि हु मह णस्थि उच्छाहो॥ (स० के० ४, १५०) पर्वत गुरु है, यह सत्य है, और कौन कहता है कि समुद्र गंभीर नहीं है । फिर भी धीर पुरुषों के साथ पर्वत और समुद्र की उपमा देने का मेरा उत्साह नहीं होता । (आक्षेप अलङ्कार का उदाहरण ) सच्चं चिअ कटमओ सुरणाहो जेण हलिअधआए। हत्थेहिं कमलदलकोमलेहिं छित्तो ण पल्लविओ॥ (स० के०५, ३१३) यह सत्य है कि इन्द्र केवल लकड़ी का ढूंठ है, नहीं तो हलवाहे की पुत्री के कोमल हस्तकमल से स्पर्श किये जाने पर भी वह क्यों पल्लवित नहीं हुआ ? सच्चं जाणइ दटुं सरिसम्मि जगम्मि जुज्जए राओ। मरउ ण तुमं भणिस्सं मरणं पि सलाहणिजं से ॥ (स० के० ५, २५८; दशरूपक प्र० २, ११७; गा० स० १, १२)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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