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________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७५९ प्रिय के स्मरण से बहती हुई अश्रुधारा के गिरने के भय से पथिक की पत्नी ने गर्दन टेढ़ी करके उसे दीपक प्रदान किया (जिससे उसके अश्रु नेत्रों में ही रह जायें, बाहर न आयें)। पिसुणेन्ति कामिणीणं जललुक्कपिआवऊहणसुहेल्लिं । कण्डइअकवोलुफुल्लणिञ्चलच्छीइं वअणाई॥ (स० के०५,३१८ गा० स०६,५४) (प्रिय के अंगस्पर्श से) पुलकित कपोल तथा विकसित और निश्चल आँखों वाली कामिनियों के मुख जल में छिपे हुए प्रिय के आलिंगन-सुख की क्रीड़ा को सूचित कर रहे हैं (जलक्रीड़ा का वर्णन )। पीणथणएसु केसरदोहलदाणुम्महीअ णिवलन्तो। तुंगसिहरग्गपडणस्स जं फलं तं तुए पत्तं ॥ (स० कं०५, ३०७) हे बकुल के पुष्प ! किसी युवती के मदिरा के कुल्ले से विकसित होकर उसके पीन स्तनों पर गिर कर तूने पहाड़ के किसी ऊँचे शिखर से गिरने के पुण्य को प्राप्त किया है। पीणपओहरलग्गं दिसाणं पवसन्तजलअसमअबिइण्णम् । सोहग्गपढमइण्हं पम्माअइ सरसणहवअं इन्दधणं॥ (स० के०४, १८ सेतुबंध १,२४) प्रवास को जाते समय जलदरूपी (जड़ता प्रदान करने वाले) नायक ने दिशाओं के मेघरूपी पीन पयोधरों में इन्द्रधनुष के रूप में प्रथम सौभाग्य-चिह्न स्वरूप जो सुंदर नखक्षत (इन्द्रधनुष के पक्ष में सरस आकाश-मंडल में स्थानयुक्त) वितीर्ण ( इन्द्रधनुष के पक्ष में जाते हुए वर्षाकाल के द्वारा वितीर्ण) किये थे वे अब अधिक मलिन हो रहे हैं। (रूपक का उदाहरण) पीणुत्तणदुग्गेज्झं जस्स भुआअन्तणिठुरपरिग्गहि । रिहस्स विसमवलिअं कंठं दुक्खेण जीविअं वोलीणं । (स० के०३, ४८, सेतु. बं०१,३) (मधुमथन की) भुजाओं से निष्ठुरता से पकड़ा गया और अपनी मोटाई के कारण कठिनता से पकड़े जाने योग्य ऐसा अरिष्टासुर का कंठ टेढ़ा करके मरोड़े जाने से क्लेश के साथ प्राणविहीन हो गया। (व्याहत का उदाहरण) पुरिससरिसं तुह इमं रक्खससरिसं कणिसाअरवइणा। कह ता चिन्तिजंतं महिलासरिसंण संपडइ मे मरणं ॥ (स० के०५, ४४३, सेतु०११, १०५) तुम्हारा यह (निधन ) पुरुषों के सदृश है और रावण ने राक्षसों के समान ही काम किया है, किंतु चिन्तामात्र से सुलभ महिलाओं के समान मेरा मरण क्यों सिद्ध नहीं हो रहा है ( यह सीता की उक्ति है)? पुलअंजणेति दहकन्धरस्स राहवसरा सरीरम्सि। जणअसुआफंसमहग्धविअ करअलाअद्विअविमुक्का ॥ *(स० के०५, १३)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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