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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास जागृत हो गया है, तभा जिसकी वस्त्ररूपी केंचुली स्खलित हो गई है ऐसा रावणरूपी सर्प अति भयानक दिखाई देने लगा । (रूपक अलङ्कार का उदाहरण ) तो ताण हअच्छाअं णिच्चललोअणसिहं पउत्थपआवम् । आलेक्खपईवाणं व णिअअं पइइचहुलत्तणं पि विअलिअम् ॥ (स० कं० ४, ५६, ५, २४ सेतुबंध २, ४५; काव्या० पृ० १४५, १७०%; विषमवाणलीला) शोभा-विहीन निश्चल लोचनरूपी शिखा से युक्त और प्रतापरहित ऐसे चित्रलिखित दीपकों की भाँति उन वानरों की स्वाभाविक चंचलता नष्ट हो गई। (साम्य अलङ्कार का उदाहरण) तं किर खणा विरजसि तं किर उवहससि सअलमहिलाओ। एहेहि वारवालिइ! अंसू मइलं समुप्पिसिमो ॥ .. (स० के०५, ३७६) तू क्षण भर में उदास हो जाती है, फिर तू सब महिलाओं का उपहास करने लगती है। हे द्वारपालिके! इधर आ, हम तेरे मलिन आँसुओं को पोंछ देंगे। (अधमा नायिका का उदाहरण) तं चिअ वअणं ते चेअ लोअणे जोवणं पि तं च्चे। अण्णा अणंगलच्छी अण्णं चिअ किं पि साहेइ॥ (दशरूपक प्र० २, पृ० १२०) उस नायिका का वही मुख है, वे ही नेत्र हैं, और वहीं उसका यौवन है, लेकिन उसके शरीर में एक विचित्र ही कमनीयता दिखाई देती है जो कुछ और ही कह रही है । (भाव का उदाहरण ) तंणस्थि किंपि पइणो पकप्पिरं जंण णिअइघरणीए। अणवरअगमणसीलस्स कालपहिअस्स पाहिज्जम् ॥ (अलङ्कार० पृ० १२३) नियतिरूपी गृहिणी ने सतत गमनशील काल-पथिकरूप अपने पति के लिये कौनसा पाथेय तैयार नहीं किया? तं ताण सिरिसहोअररयणाहरणम्मि हिअयमिक्करसं। बिंबाहरे पिआणं निवेसियं कुसुमबाणेण ॥ (ध्वन्या० उ०२ पृ० २००; काव्या० पृ०७४, ७०, विषमबाणलीला) कौस्तुभमणि को प्राप्त करने के लिये तत्पर असुरों का मन जो अत्यन्त तन्मय हो गया था, उसे कामदेव ने (कौस्तुभमणि से खींच कर ) प्रेयसी के अधरबिंब में निवेशित कर दिया । (पर्याय अलङ्कार का उदाहरण). तं तिअसकुसुमदामं हरिणा णिम्महिअसुरहिगन्धामोअं। अप्पणइ पि दूमिअपणइणिहिअएण रुप्पिणीअ विहण्णम् ॥ (स० के०५,३५१)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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