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________________ ७४२ प्राकृत साहित्य का इतिहास ( सुरत-जागरण के कारण ) निद्रा से अलसाये और झूमते हुप, तथा ( अतिशय अनुराग से) पुतलियों को तिरछे फिराते हुए, चन्द्रवदना के दृष्टिबाण कामदेव के लिये भी असह्य हैं। णियदइयदंसणुक्खित्त पहिय ! अन्नेण वच्चसु पहेण । गहवइधूआ दुल्लंघवाउरा इह हयग्गामे ॥ काव्या०, पृ०५५, १९, स० कं०५,३७५) अपनी प्रियतमा के दर्शन के लिये उत्सुक हे पथिक ! तू और किसी रास्ते से जा। इस अभागे ग्राम में गृहपति की कन्या कहीं इधर-उधर जाने में असमर्थ है। (मध्यमा नायिका का उदाहरण) णिहुअरमणम्मि लोअणपहंपि पडिए गुरुअणमझमि । सअलपरिहारहिअआ वणगमणं एव्व महइ बह॥ (काव्य० प्र०७, ३२८; काव्या० पृ० १६१, १८७) अपने प्रेमी के साथ एकान्त में रमण करने वाली कोई वधू अपने गुरुजनों द्वारा देख लिये जाने पर, घर का सब काम-काज छोड़ कर केवल वनगमन की ही इच्छा करती है ! (शृङ्गाररस के निर्वेद से बाधित होने का उदाहरण ) णेउरकोडिविलग्गं चिहुरं दइअस्स पाअपडिअस्स। हिअ माणपउत्थं उम्मोरं त्ति चिअ कहेइ ॥ (दशरूपक, पृ०४ पृ०२६७, गा० स०२,८८) प्रिया के पैरों में गिरने वाले प्रियतम के केश प्रिया के नूपुरों में उलझ गये हैं जो इस बात की सूचना दे रहे हैं कि नायिका के मानी हृदय को अब मान से छुटकारा मिल गया है। णोल्लेइ अणोल्लमणा अत्तामं घरभरंमि सयलंमि । खणमेत्तं जइ संझाए होइ न व होइ वीसामो ॥ (काव्या०, पृ०६०,३१, काव्य०प्र०३, १८) हे प्रियतम ! मेरी निष्ठर सास दिन भर मुझे घर के काम में लगाये रखती है। मुझे तो केवल सांझ के समय क्षण भर के लिये विश्राम मिलता है, या फिर वह भी नहीं मिलता। (यहाँ नायिका अपने पास खड़े प्रेमी को दिन भर काम में लगे रहने की बात सुनाकर उससे सांझ के समय मिलने की ओर इंगित कर रही है )। (सुक्ष्म अलङ्कार का उदाहरण) तइआ मह गंडस्थलणिमिअं दिटिं ण णेसि अण्णत्तो। एणिं सच्चेअ अहं तेअ कवोला ण सा दिट्ठी ॥ (काव्य००३, १६) हे प्रियतम ! उस समय तो मेरे कपोलों में निमग्न तेरी दृष्टि कहीं दूसरी जगह जाने का नाम भी न लेती थी, और अब यद्यपि मैं वहीं हूँ, वे ही मेरे कपोल हैं, फिर भी तुम्हारी वह दृष्टि नहीं रही ( यहाँ प्रियतम के प्रच्छन्न कामुक होने की ध्वनि व्यक्त होती है)। (वाक्य वैशिष्टय से वाच्य रूप अर्थ की व्यंजना का उदाहरण)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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