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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास कटुवचन कहकर धिक्कारते हैं। डंडे, घूसे, तख्ते आदि से वे उसकी मरम्मत करते हैं, और तब क्रोध में आकर घर से निकल कर भागनेवाली स्त्री की भाँति उस भिक्षु को बार-बार अपने स्वजनों की याद आती है। स्त्रीपरिज्ञा अध्ययन में बताया है कि साधुओं को किस प्रकार स्त्रीजन्य उपसर्ग सहन करना पड़ता है। कभी साधु के किसी स्त्री के वशीभूत हो जाने पर स्त्री उस साधु के सिर पर पादप्रहार करती है, और कहती है कि यदि तू मेरी जैसी सुन्दर केशोंवाली स्त्री के साथ विहार नहीं करना चाहता, तो मैं भी अपने केशों का लोंच कर डालँगी। वह उसे अपने पैरों को रचाने, कमर दबवाने, अन्न-जल लाने, तिलक और आँखों में अंजन लगाने के लिये सलाई तथा हवा करने के लिये पंखा लाने का आदेश देती है। बच्चे के खेलने के लिये खिलौने लाने को कहती है, उसके कपड़े धुलवाती है, और गोद में लेकर उसे खिलाने का आदेश देती है । नरक-विभक्ति अध्ययन में नरक के घोर दुःखों का वर्णन है। वीरस्तुति अध्ययन में महावीर को हस्तियों में ऐरावण, मृगों में सिंह, नदियों में गंगा और पक्षियों में गरुड़ की उपमा देते हुए लोक में सर्वोत्तम बताया है। कुशीलपरिभाषा अध्ययन में कुशील का वर्णन है। वीर्य अध्ययन में वीर्य का प्ररूपण है। धर्म अध्ययन में मतिमान् महावीर के धर्म का प्ररूपण है। समाधि अध्ययन में दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप रूप समाधि को उपादेय बताया है। मार्ग अध्ययन में महावीरोक्त मार्ग को सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादन करते हुए अहिंसा आदि धर्मों का प्ररूपण है। समवसरण अध्ययन में क्रिया, अक्रिया, विनय और अज्ञानवाद का खण्डन है। याथातथ्य अध्ययन में उत्तम साधु आदि के लक्षण बताये हैं। ग्रंथ अध्ययन में साधुओं के आचार-विचार का वर्णन है। जैसे पक्षी के बच्चे को ढंक आदि मांसाहारी पक्षी मार डालते हैं, उसी प्रकार गच्छ से निकले हुए साधु को पाखंडी साधु उठाकर ले जाते हैं और अपने
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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