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________________ ७२८ प्राकृत साहित्य का इतिहास गज्जन्ते खे मेहा फुल्ला णीवा पणच्चिया मोरा। ___णठो चन्दुजोओ वासारत्तो हला पत्तो ॥ (स० के० ३, १५३) मेघ गरज रहे हैं, नीप पुष्प फूल गये हैं, मोर नाच रहे हैं, चन्द्रमा का प्रकाश दिखाई नहीं देता । हे सखि ! वर्षा ऋतु आ गई है। (सामान्यतोदृष्ट का उदाहरण ) गज महच्चिअ उअरिं सम्वत्थामेण लोहहिअअस्स । जलहर ! लंबालइ मा रे मारेहि सि वराई। (शृंगार ११, १९) हे मेघ ! कठोर हृदय वाले मेरे ऊपर ही अपनी सारी शक्ति लगाकर बरस, लंबे केशवाली उस बिचारी को क्यों मारे डाल रहा है ? (विधि अलंकार का उदाहरण ) गमिआ कदम्बवामा दिडं मेहंधआरिअं गअणअलं। सहिओ गजिअसहो तह वि हु से णस्थि जीविए आसंगो॥ (स० कं०४, १५७, सेतुबंध १, १५) कदंब के पुष्पों का स्पर्श करके वायु बहती हैं, आकाशमंडल में मेघ का अंधकार छाया हुआ है, गर्जन का शब्द सुनाई पड़ रहा है, फिर भी ( राम के) जीवन में उत्साह नहीं। गम्मिहिसि तस्य पासं मा जूरसु तरुणि! चड्ढउ मिअंको। दुद्धे दुद्धम्मिव चन्दिआए को पेच्छइ मुहं ते॥ (स० कं०५, ४०३; गा० सा०७,७) हे तरुणि ! तू उसके पास पहुँचेगी, तू दुखी मत हो, ज़रा चन्द्रमा को ऊपर पहुँच जाने दे । जैसे दूध में दूध मिल जाने से उसका पता नहीं लगता, वैसे ही चाँदनी में तेरे मुँह को कौन देख सकेगा?' (सामान्य अलंकार का उदाहरण) गहवइसुएण सम सञ्चं अलिअं व किं विआरेण । धण्णाइ हलिअकुमारिआइ जणम्मि जणवाओ॥ "(स० के०५, २५९) उस भाग्यशाली हलवाहे की कन्या का गृहपति के पुत्र के साथ लोकापवाद फैल गया है। अब यह अपवाद सच्चा है या झूठा, यह सोचने से क्या लाभ ? गाढालिंगणरहसुज्जुअम्मि दइए लहुं समोसरइ। माणंसिणीण माणो पीलणभीअव हिअआहिं॥ (ध्वन्या०२ पृ० १८६) हे सखि ! उस मनस्विनी के मान के विषय में क्या कहूं ? वह तो प्रियतम के वेगपूर्वक गाढ़ आलिंगन के लिये उद्यत होते ही ( दोनों के बीच में ) दब जाने से शीघ्र ही भाग खड़ा हुआ! (उत्प्रेक्षा का उदाहरण) १. मिलाइये-जुवति जोन्हमें मिलि गई नैक न होति लखाय । सोंधे के डोरनि लगी अली चली संग जाय। (बिहारी सतसई २२८)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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