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________________ ७२६ प्राकृत साहित्य का इतिहास कुविआओ वि पसण्णाओ ओरण्णमुहीओ विहसमाणीओ। जह गहिआ तह हिअअं हरति उच्छिन्नमहिलाओ ॥ (स० कं० ५, ३२४, ध्वन्या०१ पृ०७४) स्वैर विहार करने वाली महिलायें कुपित हों या प्रसन्न, रोती हुई हो या हँसती हुई, किसी भी हालत में युवकों का मन वश में कर लेती हैं । (लक्षणा का उदाहरण) केलीगोत्तक्खलणे वरस्स पप्फुल्लइ दिहिं देहि । बहुवासअवासहरे बहुए बाहोल्लिया दिट्ठी॥ (स० कं० ५, १७२) क्रीड़ा करते हुए गोत्र-स्खलन (किसी दूसरी नायिका का नामोलंख ) से वर को आनन्ददायी संतोष प्राप्त होता है, जब कि वधू अत्यन्त सुगंधित वासगृह में अश्रुपूर्ण दृष्टि से देख रही है। केली गोत्तक्खलणे विकुप्पए केअवं अआणन्ती । दुट ! उअसु परिहासं जाआ सञ्चं विअ परुण्णा ॥ (दशरूपक० अ०४, पृ० २६५) हे दुष्ट ! मजाक तो देखो, मालूम होता है तुम्हारी पत्नी जैसे सचमुच ही रो रही है। क्रीड़ा के समय गोत्र-स्खलन (किसी दूसरी नायिका का नाम लेना) के छल को न जानती हुई वह कोप किये बैठी है । (नायक ने नायिका का गोत्र-स्खलन किया था जिसे वह समझ नहीं सकी)। केसेसु बलामोडिअ तेण असमरम्मि जअसिरी गहिआ। जह कंदराहि विहुरा तस्स दढं कंठअम्मि संठविआ॥ (काव्य० ४, ६५) उसने जैसे ही युद्धभूमि में केशों को पकड़ कर जयश्री को अपनी ओर खींचा, वैसे ही कन्दराओं ने अपने शत्रुओं (प्रेमियों ) को जोर से अपने कंठ से लगा लिया । ( अपह्नति, उत्प्रेक्षा का उदाहरण) को एसोत्ति पलोढुं सिंवलिवलिअंपिअंपरिक्खसइ । हलिअसुअं मुद्धवहू सेअजलोल्लेण हत्थेण ॥ (स० कं० ५, ३०२) यह कौन ? ( यह कहकर ) मुग्धा वधू सेंमल के पेड़ के पीछे छिपे हुए अपने प्रिय हलवाहे के पुत्र को, स्वेद से गीले अपने हाथ से पकड कर बैठा लेती है। (सेमल के पेड़ के नीचे खेल हो रहा है) कोला खणन्ति मोत्थं गिद्धा खाअन्ति मउअमंसाइम्। उलुआ णन्ति काए काआ उलुए वि वाअन्ति ॥ (स० कं० १, ६४) सूअर नागरमोथे को खोदते हैं, गीध मृतक का मांस खाते हैं, उल्लू कौओं को मारते हैं और कौए उल्लुओं को खाते हैं। - (यह निरलंकार-अलंकार विहीन-का उदाहरण है)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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