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________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७०९ झूठ-मूठ सोने का बहाना बनाकर अपनी आँखें मीचनेवाले हे सुभग ! मुझे (अपने विस्तरे पा) जगह दे । तुम्हारे कपोल का चुंबन लेने से तुम्हें पुलकित होते हुए मैंने देखा है । सच कहती हूँ, अब कभी इतनी देर न लगाऊँगी ( उद्भेद और व्याज अलंकार का उदाहरण) अवसर रोउं चिअ णिम्मिआई मा पुससु मे हअच्छीइं। दसणमेत्तुम्मत्तेहिं जहि हिअअं तुह ण णाअम् ॥ (ध्वन्या० उ० ३, पृ० ३३१) (हे खठ नायक ! ) यहाँ से दूर हो, मेरी अभागी आँखें (विधाता ने ) रोने के लिए ही बनाई है, इन्हें नत पोंछ; तेरे दर्शन मात्र से उन्मत्त हुई ये आँखें तेरे हृदय को न पहचान सकीं। अवऊहिअपुवदिसे समझ जोण्हाए सेविअपओसमुहे । माइ ! ण शिजउ रअगी वरदिसाइतपच्छिअम्मि मिअंके । - (स० के० ५, ३५६) अपनी ज्योःला से जिसने पूर्व दिशा का आलिंगन किया है और प्रदोषमुख का जिसने पान किया है ऐसा चन्द्रमा पश्चिम दिशा की ओर जा रहा है । हे माई ! रात नहीं कटती । अवरण्हाअअजाभाउअस्स विउणेइ मोहणुकंठं । बहुआए घरपलोहरमजणमुहलो वलअसहो। (शृंगार २२, ९८) दामाद का अपराह्नकाल में आगमन सुरत की उत्कंठा को दुगुना कर देता है । उस समय घर के पिछवाड़े स्लान में संलग्न वधू के कंकड़ों का शब्द सुनाई देने लगा। अवलम्बिअमाणपरम्मुहीम एंतस्स माणिणी ! पिअस्स। पुटपुलउग्गमो तुह कहेइ संमुहठिअं हिअअं॥ (स० के०५,३८१, गा० स० १, ८७) हे मानिनि ! प्रियतम के आने पर तू मान करके बैठ गई, किन्तु तेरी पीठ के रोमांच से मालूम होता है कि तेरा हृदय उसमें लगा है।' (विरोध अलंकार का उदाहरण) अवलम्बह मा संकह ण इमा गहलंधिया परिब्भमइ । अत्थक्कगजिउब्भंतहित्थहिअआ पहिअजाआ ॥ कं०५,३४३ गा०स०४,८६) सहसा बादलों के गर्जन से मस्त हुई प्रवास पर गये हुए पथिक की प्रियतमा घर छोड़कर भटकती फिरती है। किसी भूत-प्रेत की बाधा से वह पीड़ित नहीं, डरो मत । सहारा देकर इसे बाहर जाने से रोको। १.मिलाइये-रही फेरि मुख हेरि इत हितसमुहे चित नारि। दीठि परत उठि पीठि के पुलके कहत पुकारि ॥ (बिहारीसतसई ५६७)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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