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________________ रिष्टसमुच्चय ६७७ गाथाओं में हस्तरेखाओं का महत्त्व, पुरुषों के लक्षण, पुरुषों का दाहिना और स्त्रियों का बाँया हाथ देखकर भविष्यकथन आदि विषयों का वर्णन किया गया है। विद्या, कुल, धन, रूप और आयुसूचक पाँच रेखायें होती हैं। हस्तरेखाओं से भाई-बहन, और सन्तानों की संख्या का भी पता चलता है। कुछ रेखाएँ धर्म और व्रत की सूचक मानी जाती हैं। रिष्टसमुच्चय रिष्टसमुच्चय के कर्ता आचार्य दुर्गदेव दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वान थे। उन्होंने विक्रम संवत् १०८६ (ईसवी सन् १०३२) में कुंभनगर (कुंभेरगढ़, भरतपुर ) में इस ग्रन्थ को समाप्त किया था।' दुर्गदेव के गुरु का नाम संजयदेव था। उन्होंने पूर्व आचार्यों की परंपरा से आगत मरणकरंडिका के आधार पर रिष्टसमुच्चय में रिष्टों का कथन किया है। रिष्टसमुच्चय में २६१ गाथायें हैं जो प्रधानतया शौरसेनी प्राकृत में लिखी गई हैं। इस ग्रन्थ में तीन प्रकार के रिष्ट बताये गये हैं-पिंडस्थ, पदस्थ और रूपस्थ | उंगलियों का टूटना, नेत्रों का स्तब्ध होना, शरीर का विवर्ण हो जाना, नेत्रों से सतत जल का प्रवाहित होना आदि क्रियायें पिंडस्थ में, सूर्य और चन्द्र का विविध रूपों में दिखाई देना, दीपशिखा का अनेक रूप में देखना, रात का दिन के समान और दिन का रात के समान प्रतिभासित होना आदि क्रियायें पदस्थ में, तथा अपनी छाया का दिखाई न देना, दो छायाओं, अथवा आधी छाया का दिखाई देना आदि क्रियायें रूपस्थ में पाई जाती हैं। इसके पश्चात् स्वप्नों का वर्णन है। स्वप्न दो प्रकार के बताये गये हैं, एक देवेन्द्रकथित, और दूसरा सहज | मरणकंडी का प्रमाण देते हुए दुर्गदेव ने लिखा है न हुसुणइ सतणुमदं दीवयगंधं च णेव गिण्हेइ । सो जियइ सत्तदियहे इय कहिलं मरणकंडीए ॥ १३६ ॥ १. डाक्टर ए० एस० गोपाणी द्वारा संपादित, सिंघी जैन ग्रन्थमाला बम्बई से सन् १९४५ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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