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________________ छन्दःकोश ६५३ में मौजूद रहे होंगे । गाथालक्षण पर रत्नचन्द्र ने टीका लिखी है ।" छन्दः कोश छन्दः कोश में ७४ गाथाओं में अपभ्रंश के कुछ छंदों का विवेचन है । यह रचना प्राकृत और अपभ्रंश दोनों में लिखी गई है । इसके कर्ता वज्रसेनसूरि के शिष्य जैन विद्वान् रत्नशेखरसूरि हैं जो ईसवी सन् की १४वीं शताब्दी के द्वितीयार्ध में हुए हैं। इस रचना में अर्जुन ( अल्हु ) और गोसल ( गुल्हु ) नामक छंदशास्त्र के दो विद्वानों का उल्लेख मिलता है | चन्द्रकीत्ति सूरि ने इस पर १७वीं शताब्दी में टीका लिखी है । छन्दोलक्षण ( जिनप्रभीय टीका के अन्तर्गत ) नन्दिषेणकृत अजितशान्तिस्तव के ऊपर जिनप्रभ ने जो टीका लिखी है उसके अन्तर्गत छंद के लक्षणों का प्रतिपादन किया है। इस टीका में कविदर्पण का उल्लेख मिलता है, जैसा कि पहले कहा जा चुका है । नन्दिपेण ने अजितशांतिस्तव में २५ विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया है, इन्हीं का विवेचन जिनप्रभ टीका में किया गया है । छंद:कंदली विदर्पण के टीकाकार ने अपनी टीका में छंदः कंदली का उल्लेख किया है । छंदशास्त्र के ऊपर लिखी हुई प्राकृत की यह रचना थी । इसके कर्ता का नाम अज्ञात है । कविदर्पण के टीकाकार ने छंदः कंदली में से उद्धरण दिये हैं । १. जैसलमेर भांडागारीय ग्रन्थसूची ( पृष्ठ ६१ ) के अनुसार भट्टमुकुल के पुत्र हट ने इस पर विवृति लिखी है, देखिये प्रोफेसर हीरालाल कापडिया, पाइय भाषाओ भने साहित्य, पृष्ठ ६२ फुटनोट |
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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