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________________ आयारंग को त्रिपिटक कहा गया है)। ये अंग महावीर के गणधर सुधर्मा स्वामीरचित माने जाते हैं। बारहवें अंग का नाम दृष्टिवाद है जिसमें चौदह पूर्वो का समावेश है। यह लुप्त हो गया है, इसलिये आजकल ग्यारह ही अंग उपलब्ध हैं। इन अंगों के विषयों का वर्णन समवायांग और नन्दीसूत्र में दिया हुआ है । आयारंग (आचारांग) आचारांग सूत्र' का द्वादश अंगों में महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसलिये इसे अंगों का सार कहा है | सामयिक नाम से भी इसका उल्लेख किया गया है। निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों के आचार-विचार का इसमें विस्तार से वर्णन है। इसमें दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में नौ अध्ययन हैं जो बंभचेर (ब्रह्मचर्य) कहलाते हैं । इनमें ४४ उद्देशक हैं । द्वितीय श्रुतस्कंध में १६ अध्ययन हैं जो तीन चूलिकाओं में विभक्त हैं। दोनों के विषय और वर्णनशैली देखकर जान पड़ता है कि पहला श्रुतस्कंध दूसरे की अपेक्षा अधिक मौलिक और प्राचीन है । मूल में पहला ही श्रुतस्कंध था, बाद में भद्रबाहु द्वारा आचारांग पर नियुक्ति लिखते समय इसमें आयारग्ग ( चूलिका) लगा दिये गचे । आचारांग की गणना प्राचीनतम जैन सूत्रों में की जाती है। यह गद्य और पद्य दोनों में है। कुछ गाथायें अनुष्टुप् छंद में हैं। इसकी भाषा प्राचीन प्राकृत का नमूना है | इस सूत्र पर भद्रबाहु ने नियुक्ति, जिनदासगणि ने चूर्णी और शीलांक (ईसवी सन् ८७६) ने टीका लिखी है | शीलांक की टीका गंधहस्तिकृत शत्रपरिज्ञा विवरण के अनुसार लिखी गई है। जिनहंस १. नियुक्ति और शीलांक की टीका सहित आगमोदय समिति द्वारा सन् १९३५ में प्रकाशित । इसका प्रथम श्रुतस्कंध वाल्टर शूबिंग द्वारा संपादित होकर लिज़ग में सन् १९१० में प्रकाशित हुआ। १. अंगाणं किं सारो ? आयारो । आचारांग १.१ की भूमिका । ३. नायाधम्मकहाओ, अध्ययन ५ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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