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________________ वृत्तजातिसमुच्चय ६५१ वृत्तजातिसमुच्चय पद्यात्मक प्राकृत भाषा में लिखा गया है जिसमें मात्राछंद और वर्णछन्द के सम्बन्ध में विचार किया गया है | यह ग्रन्थ छह नियमों में विभक्त है। पहले नियम में प्राकृत के समस्त छन्दों के नाम गिनाये हैं जिन्हें आगे के समयों में समाया गया है । तीसरे नियम में द्विपदी छन्द के ५२ प्रकारों का प्रतिपादन है । चौथे नियम में प्राकृत के सुप्रसिद्ध गाथा - छन्द का लक्षण बताया है, इसके २६ प्रकार हैं। पाँचवाँ नियम संस्कृत में है, इसमें संस्कृत के ५० वर्णछन्दों का वर्णन है । छठे नियम में प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, लघुक्रिया, संख्या और अध्वान नाम छह प्रत्ययों का लक्षण बताया है । विरहांक ने अडिला, ढोसा मागधिका और मात्रा रड्डा को क्रम से आभीरी, मारुवाई ( मारवाड़ी ), मागधी और अपभ्रंश से उपलक्षित कहा है (४-२८-३६ ) चक्रपाल के पुत्र गोपाल ने वृत्तजातिसमुच्चय की अनेक प्रतियों को देख कर उस पर टीका लिखी है। टीकाकारने पिंगल, सैतव, कात्यायन, भरत, कंबल और अश्वतर को नमस्कार किया है | विदर्पण नन्दिषेणकृत अजितशान्तिस्तव के ऊपर लिखी हुई जिनप्रभ की टीका में कविदर्पण का उल्लेख मिलता है । यह टीका सम्वत् १३६५ में लिखी गई थी । दुर्भाग्य से कविदर्पण और उसके टीकाकार का नाम अज्ञात है' । मूल ग्रन्थकर्ता और टीकाकार १. यह ग्रंथ प्रोफेसर एच० डी० वेलेनकर द्वारा संपादित सिंधी जैन ग्रन्थमाला बम्बई से प्रकाशित हो रहा है । मुद्रित ग्रंथ मुझे मुनि जिनविजयजी की कृपा से देखने को मिला है। इसी के साथ नन्दिनाव्य का गाथालक्षण, रत्नशेखरसूरि का छन्दःकोश और नन्दिपेण के अजितशांतिस्तव की जिनप्रभीय टीका के अन्तर्गत छन्दोलक्षणानि भी प्रकाशित हो रहे हैं ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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