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________________ ६४९ प्राकृत के अन्य व्याकरण व्याकरणकार का समय ईसवी सन् की ८वीं शताब्दी से १२वीं शताब्दी के बीच माना गया है। अजैन विद्वानों में नरसिंह ने प्राकृतशब्दप्रदीपिका, कृष्णपंडित अथवा शेषकृष्ण ने प्राकृतचन्द्रिका' और प्राकृतपिंगल-टीका के रचयिता वामनाचार्य ने प्राकृतचन्द्रिका लिखी । इसी प्रकार प्राकृतकोमुदी, प्राकृतसाहित्यरत्नाकर, षड्भाषासुबन्तादर्श, भापार्णव आदि ग्रन्थ लिखे गये । __यूरोप के विद्वानों ने प्राकृत के व्याकरणों का आधुनिक ढंग से सांगोपांग अध्ययन किया। सबसे पहले होएफर ने 'डे प्राकृत डिआलेक्टो लिब्रिदुओ' (बर्लिन से सन् १८३६ में प्रकाशित) नामक पुस्तक लिखी । प्रायः इसी समय लास्सन ने 'इन्स्टीट्यूसीओनेस लिंगुआए प्राकृतिकाए' (बौन से सन् १८३६ में प्रकाशित ) प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने प्राकृतसम्बन्धी प्रचुर सामग्री एकत्रित कर दी । वेबर ने महाराष्ट्री और अर्धमागधी पर काम किया। एडवर्ड म्यूलर ने अर्धमागधी और हरमन याकोबी ने महाराष्ट्री का गम्भीर अध्ययन किया। कौवेल ने 'ए शार्ट इन्ट्रोडक्शन टू द आर्डिनरी प्राकृत ऑव द संस्कृत ड्रामा विद ए लिस्ट ऑव कॉमन इरेगुलर प्राकृत वस' ( लन्दन से १८७५ में प्रकाशित) पुस्तक लिखी। होग ने फैरग्लाइशृंगडेस प्राकृता मित डेन रोमानिशन श्माखन्' (बर्लिन से सन् १८६९में प्रकाशित) पुस्तक प्रकाशित की। होएनल ने भी प्राकृत व्युत्पत्तिशास्त्रों पर काम किया। रिचर्ड पिशल का 'प्रामेटिक डेर १. देखिये डाक्टर हीरालाल जैन का भारतकौमुदी (पृष्ठ ३१५-२२) में 'ट्रेसेज़ ऑव ऐन ओल्ड मीट्रिकल ग्रामर' नामक लेख । भारतकौमुदी के इस अंक का समय नहीं ज्ञात हो सका। २. यह श्लोकबद्ध है । पीटर्सन की थर्ड रिपोर्ट में पृष्ठ ३४२-४८ पर इसके उद्धरण दिये हैं। ३. शकुन्तलानाटक की चन्द्रशेखरकृत टीका में उल्लिखित । ४. देखिये पिशल, प्राकृतभापाओं का व्याकरण, पृष्ठ ८८-९ । . ५. देखिये पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ ९२-३ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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