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________________ ६०६ प्राकृत साहित्य का इतिहास यमक अलंकार का प्रयोग हुआ है | संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट है। ग्रन्थ दुरूह है और बिना टीका की सहायता के समझना कठिन है। निम्नलिखित उद्धरणों से इस ग्रन्थ के रचनावैशिष्ट्य का पता लग सकता है रअ-रुइरंग ताणं घेत्तूणं व अंगणम्मि रंगताणं । चुंबइ माआ महिआ बल-कण्हाणं मुहाइ माआ-महिआ॥ -धूलि से धूसरित अंगवाले आंगन में रेंगते हुए बलदेव और कृष्ण को उठाकर पूजनीय माता उन्हें चुंबने लगी, वह माया के वश में हो गई। कृष्ण की क्रीडा का चित्रण देखियेजो णिच्चो राअंतो रमावई सो वि गव्व-चोराअंतो। वअ-बहु-बद्धो संतो सद्दो व्व ठिइ-च्चुओ अबद्धो संतो॥ -जो (कृष्ण) नित्य शोभा को प्राप्त होते हुए, गायों के दूध की चोरी करते हुए, ब्रजबनिता यशोदा के द्वारा (ओखली से) बाँध दिये गये, फिर भी वे शान्त रहे ; मर्यादा से च्युत शब्द की भाँति वे अबद्ध ही रहे। भुंगसंदेश शौरिचरित की भाँति दुर्भाग्य से शृंगसंदेश की भी पूर्ण प्रति उपलब्ध नहीं हो सकी।' इस ग्रन्थ की एक अपूर्ण प्रति त्रिवेन्द्रम के पुस्तकालय से मिली है। ग्रन्थकर्ता की भाँति ग्रन्थ के टीकाकार का नाम भी अज्ञात है। टीकाकार ने अपनी टीका में मेघदूत, शाकुन्तल, कर्पूरमञ्जरी तथा वररुचि और त्रिविक्रम के प्राकृतव्याकरण से सूत्र उद्धृत किये हैं। प्राकृत का यह काव्य मेघदूत के अनुकरण पर मंदाक्रान्ता छन्द में लिखा गया है आलावं से अह सुमहुरं कूइअं कोइलाणं । अंगं पाओ उण किसलअं आणणं अंबुजम्म १. डाक्टर ए० एन० उपाध्ये ने इस काम्य की छह गाथायें . प्रिंसिपल करमरकर कमोमरेशन वोल्यूम, पूना, १९४८ में संपादित की हैं।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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