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________________ वाचना कहते हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य वर्तमान आगम इसी संकलना का परिणाम है।' ___आगमों की भाषा महावीर ने अर्धमागधी भाषा में उपदेश दिया और गणधरों ने इस उपदेश के आधार पर आगमों की रचना की । समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति और प्रज्ञापना आदि सूत्रों में भी आगमों की भाषा को अर्धमागधी कहा है। हेमचन्द्र ने इसे आर्ष प्राकृत अर्थात् प्राचीन प्राकृत नाम दिया है और इसे प्राचीन सूत्रों की भाषा माना है ।२ गणधरों द्वारा संगृहीत जैन आगमों की यह भाषा अपने वर्तमान रूप में हमें महावीरनिर्वाण के लगभग १००० वर्ष बाद उपलब्ध होती है। दीर्घकाल के इस व्यवधान में समय-समय पर जो आगमों की वाचनायें हुई उनमें आगमग्रन्थों में निश्चय ही काफी परिवर्तन हो गया होगा | आगम के टीकाकारों का इस ओर लक्ष्य गया है। टीकाकारों के विवरणों में विविध पाठांतरों का पाया जाना इसका प्रमाण है। उदाहरण के लिये राजप्रश्नीय के विवरणकार ने मूल पाठ से भिन्न कितने ही पाठांतर उद्धृत किये हैं । शीलांकसूरि ने भी सूत्रकृतांग की टीका में लिखा है कि सूत्रादर्शों में अनेक प्रकार के सूत्र उपलब्ध होते हैं, हमने एक ही आदर्श को स्वीकार कर यह विवरण लिखा है, अतएव यदि कहीं सूत्रों में विसंवाद दृष्टिगोचर हो तो चित्त में व्यामोह नहीं करना चाहिये । ऐसी हालत में १. बौद्ध त्रिपिटक की तीन संगीतियों का उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में आता है । पहली संगीति राजगृह में, दूसरी वैशाली में और तीसरी समान अशोक के समय बुद्ध-परिनिर्वाण के २३६ वर्ष बाद पाटलिपुत्र में हुई। इसी समय से बौद्ध आगम लिपिबद्ध किये गये। देखिये कर्न, मैनुअल ऑव इण्डियन बुद्धिज्म, पृष्ठ १०१ इत्यादि । २. देखिये इसी पुस्तक का पहला अध्याय । ३. सूत्रकृतांग २,२-३९ सूत्र की टीका ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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