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________________ ५६६ प्राकृत साहित्य का इतिहास है | धनपाल ने पहले संस्कृत गद्य-पद्य फिर प्राकृत पद्य में नेमिनाथ की स्तुति की । यात्रा से लौट कर धनपाल ने तीर्थोद्यापन किया और गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए वह समय यापन करने लगा। जयन्तीप्रकरण जयन्तीप्रकरण को जयन्तीचरित नाम से भी कहा जाता है।' भगवतीसूत्र के १२ वें शतक के द्वितीय उद्देशक के आधार से मानतुंगसूरि ने जयन्तीप्रकरण की रचना की है जिस पर उनके शिष्य मलयप्रभसूरि ने सरस वृत्ति लिखी है। इस टीका में संस्कृत गद्य-पद्य का भी उपयोग किया गया है। मलप्रभसूरि विक्रम सम्वत् १२६० (सन् १२०३) में विद्यमान थे। महासती जयन्ती कौशाम्बी के राजा सहस्रानीक की पुत्री, शतानीक की भगिनी और उसके पुत्र राजा उदयन की फूफी थी। महावीर के शासनकाल में वह निर्ग्रन्थ साधुओं को वसति देने के कारण प्रथम शय्यातरी के रूप में प्रसिद्ध हुई। जयन्ती ने महावीर भगवान से जीव और कर्मविषयक अनेक प्रश्न पूछे।। इस में कुल मिलाकर केवल २८ गाथायें हैं, लेकिन इनके ऊपर लिखी हुई विशद वृत्ति में अनेक आख्यान संग्रहीत हैं। आरम्भ में कौशम्बी नगरी, शतानीक राजा और उसकी मृगावती रानी का वर्णन है । उज्जैनी का राजा प्रद्योत मृगावती को प्राप्त करना चाहता था, इस पर दोनों राजाओं में युद्ध हुआ। अन्त में मृगावती ने महावीर के समक्ष उपस्थित होकर श्रमणी दीक्षा ग्रहण कर ली। राजा प्रद्योत को महावीर ने परदारा-वर्जन का उपदेश दिया। अभयदान में मेघकुमार की कथा है। मेघकुमार का आठ कन्याओं से विवाह होता है; विवाह सामग्री का यहाँ वर्णन किया १. पन्यास श्रीमणिविजय जी गणिवर प्रन्थमाला में वि० सं० २००६ में प्रकाशित।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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