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________________ ५५२ प्राकृत साहित्य का इतिहास रहा था । राजा नरसिंह ने उसे अपने मन्त्र-बल से कोई कौतुक दिखाने की प्रार्थना की | घोरशिव ने कृष्णचतुर्दशी को रात्रि के समय श्मशान में जाकर अग्नितर्पण करने के लिये राजा से कहा । राजा ने इसे स्वीकार कर लिया। श्मशान में पहुँच कर घोरशिव ने वेदिका रची, मण्डल बनाया । फिर वहाँ पद्मासन लगाकर प्राणायामपूर्वक मन्त्र जपने लगा। श्मशान का वर्णन देखिये निलीणविज्जसाहगं पवूढपूयवाहगं, करोडिकोडिसकडं, रडंतघूयकक्कडं । सिवासहस्ससंकुलं, मिलंतजोगिणीकुलं, पभूयभूयभीसणं, कुसत्तसत्तनासणं। पघुट्ठदुट्ठसावयं जलंततिव्वपावयं, भसंतडाइणीगणं पवित्तमंसमग्गणं ॥१॥ कहकहट्टहासोवलक्खगुरुरक्खलक्खदुप्पेच्छं । अइरुक्खरुक्खसंबद्धगिद्धपारद्धघोररवं ॥२॥ उत्तालतालसंदुम्मिलंतवेयालविहियहलबोलं । कीलावणं व विहिणा विणिम्मयं जमनरिन्दस्स ॥३॥ -यहाँ विद्या साधक बैठे हुए हैं, पूजा-वाहक उपस्थित हैं, यह स्थान कापालिकों से व्याप्त है और उल्लुओं के बोलने का शब्द यहाँ सुनाई दे रहा है। अनेक गीदड़ भाग-दौड़ रहे हैं, योगिनियाँ एकत्रित हैं, यह स्थान भूतों से भीषण है, प्राणियों का यहाँ वध किया जा रहा है। अनेक दुष्ट जंगली पशुओं का घोष सुनाई पड़ रहा है, अग्नि जल रही है, डाकिनियाँ इधर-उधर भ्रमण कर रही हैं, पवित्र मांस वे मांग रही हैं। अट्टहास करने वाले राक्षसों के कारण यह स्थान दुष्प्रेक्ष्य है, वृक्षों पर बैठे हुए गीधों का भयानक शब्द सुनाई दे रहा है, वैतालिक ऊँची ताल उल्लेख किया है । देखिये के० के० हण्डी का यशस्तिलक एण्ड इण्डियन कल्चर, पृष्ठ ३५९ और उसका फुटनोट ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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