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________________ ५१३ भवभावना किमविक्खो य पणासइ सूरो तिमिरं तिहुअणस्स ? -मेघ किसके लिये बरसते हैं ? सुन्दर वृक्ष किसके लिये फलते हैं ? सूर्य तीनों लोकों के अंधकार को क्यों नष्ट करता है ? २. जस्स न हिअयंमि बलं कुणंति किं हंत तस्स सत्थाई ? निअसत्थेणऽवि निहणं पावंति पहीणमाहप्पा ॥ -जिसके हृदय में शक्ति नहीं, उसके शस्त्र किस काम में आयेंगे ? अपने शस्त्र होने पर भी क्षीण शक्तिवाले पुरुष मृत्यु को प्राप्त होते हैं। ३. दोसा कुसीलइत्थी वाहीओ सत्तुणो खला दुट्ठा । मूले अनिरुभंता दुक्खाय हवंति वड्ढंता ।। -दोष, व्यभिचारिणी स्त्री, व्याधि, शत्रु और दुष्ट पुरुषों को यदि आरंभ से ही न रोका जाये तो वे दुख के कारण होते हैं। ४. महिला हु रत्तमेत्ता उच्छखंडं व सक्करा चेव । हरइ विरत्ता सा जीवियपि कसिणाहिगरलव्य ।। -महिला जब आसक्त होती है तो उसमें गन्ने के पोरे अथवा शक्कर की भांति मिठास होता है, और जब वह विरक्त होती है तो काले नाग की भांति उसका विष जीवन के लिये घातक होता है। ५. पढमं पि आवयाणं चिंतेयव्वो नरेण पडियारो। न हि गेहम्मि पलित्ते अवडं खणिउं तरइ कोई ॥ -विपत्ति के आने के पहले ही उसका उपाय सोचना चाहिये | घर में आग लगने पर क्या कोई कुंआँ खोद सकता है ? ६. जाई रूयं विज्जा तिन्निवि निवडंतु कंदरे विवरे । __ अत्थोच्चिय परिवड्ढउ जेण गुणा पायडा होति ।। -जाति, रूप और विद्या ये तीनों ही गुफा में प्रवेश कर जायें, केवल एक धन की वृद्धि हो जिससे गुण प्रकट होते हैं। ___मथुरा में सुपार्श्व जिन के सुवर्णस्तूप होने का उल्लेख है। रुद्रदत्त के सुवर्णभूमि की ओर प्रस्थान करते हुए बीच में टंकण देश पड़ा; वेत्रवन को लाँघ कर उसने इस देश में प्रवेश किया । ३३ प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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